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आर्थिक भूगोल

आर्थिक भूगोल चारों ओर एक पक्का मजबूत बाँध बना दिया जाता है। इस घेरे में बाहरी तथा मीतरी जल भंडार होते हैं तथा नमक बनाने का बड़ा हौज़ होता है। जब पानी ऊँचा उठता है तो बाहरी जल भंडार भर जाता है। इस भंडार से पानी भीतरी भंडार में जाता है वहाँ से पानी नमक के हौज में भेजा

जाता है। नमक के हौज़ में कुछ दिन रहने के उपरान्त ऊपरी सतह पर

नमक के कण जम जाते हैं। जब यह कण एक इंच मोटे हो जाते हैं तब नमक होज़ के किनारे पर इकट्ठा कर दिया जाता है और नमक को सुखा लिया जाता है। हौज़ का पानी निकाल कर उसमें नया पानी भर दिया जाता है। नमक बनाने का काम जनवरी से जून तक होता है। बम्बई के नमक का एक बड़ा हिस्सा रान नमक के नाम से प्रसिद्ध है क्योंकि यह नमक रान-श्राव-कच ( Rann of Cutch) के समीपवर्ती कुओं के जल से बनाया जाता है। रान के समीप सबसे बड़ा कारखाना खारागोदा नामक स्थान पर है। यहाँ बड़े बड़े कुंओं के पानी से नमक तैयार किया जाता है। नवम्बर से एप्रिल तक नमक बनाने का सीजन होता है। सिंध में करांची के समीप मौरीपूर में समुद्र तट पर एक बड़ा नमक का कारखाना है । यहाँ भी पानी कुओं से लिया जाता है। कारखाने के चारों ओर गहरी खाई बना दी गई है जिसमें कि प्रति पंद्रह दिन में ज्वार भाटे के कारण पानी भर जाता है । यह पानी कुओं में जाता है। जहाँ से पानी नमक बनाने के हौज़ों में ले जाया जाता है। भारतवर्ष में करांचा नमकं बनाने के लिए सबसे अधिक उपयुक्त स्थान है। यहाँ वर्षा बहुत कम (७ इंच ) होती है । अतएव वायु में नमी नहीं रहता और वह चलती रहती है। यहाँ गरमी भी खूब पड़ती है। इस कारण यहाँ वर्ष में ग्यारह महीने नमक बनाया जा सकता है। पूर्व तट पर मदरास प्रान्त में ही सारे नमक के कारखाने स्थित हैं। नमक बनाने का ढंग वही है जो बम्बई में है। उत्तर के जिलों में जनवरी के अन्त से लेकर जूलाई के प्रारम्भ तक नमक बनाया जाता है। दक्षिण में मार्च या एप्रिल में काम शुरू होता है और अक्टूबर तथा नवम्बर तक चलता है । मदरास का नमक प्रान्त में बिकता हैं और सं.लोन को भेजा जाता है। कच्छ और सिंघ के तट से पश्चिम राजपूताना तथा वहावलपुर राज्य में जो विस्तृत मरुभूमि फैला हुई है उसमें बहुत सी बड़ी और छोटी नमक की झीलें हैं। इनमें सांमर तथा डीडवाना झीलें बहुत बड़ी हैं। इन झीलों' ।