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आर्थिक भूगोल

आर्थिक भूगोल लाख जंगल से इकट्ठी करली जाती है किन्तु अधिकतर लाख के कोड़े को वृक्षों पर छोड़कर उनसे लाख को फसल तैयार कराई जाती है। लाख को वृक्षों से छुटा लेने के उपरान्त उसको पीसा जाता है और चलनियों से छान लिया जाता है । इस क्रिया के द्वारा लाख में जो अन्य पदार्थ मिले रहते हैं वे अलग कर दिये जाते हैं । इसके उपरान्त लाख को धोकर उसका रंग निकाल दिया जाता है और शुद्ध लाख रह जाती है। लाख की सबसे अधिक उत्पत्ति विलासपुर, संथाल परगना, सिंगभूमि, छोटा नागपूर के जिलों में मयूरभंज राज्य, उड़ीसा तथा मध्यप्रान्त में होती है । भारतवर्ष से प्रतिवर्ष बहुत सी लाख विदेशों को भेजी जाती है । भारतवर्ष में खैर का वृक्ष बहुत पाया जाता है । खैर का वृक्ष सूखी पहाड़ियों तथा तराई के वनों में बहुत मिलता है। खैर कत्था और कच को लकड़ी से कत्था और कच (रंग ) तैयार किया जाता है। भारतवर्ष में पान के साथ कत्था खाया जाता है, जितना भी कत्था तैयार होता है वह सब देश में ही खर जाता है। अनु- मान किया जाता है कि देश में लगभग एक लाख मन कत्था प्रतिवर्ष खा लिया जाता है। कन (रंग ) योरोप को भेजा जाता है, इसका रंग खाकी होता है और रगने के काम आता है ।

लकड़ी के छोटे छोटे टुकड़ों को एक बड़े बर्तन में उबाला जाता है।

फिर छान कर कत्या और कच अलहदा कर लिया जाता है। अधिकतर कत्था पुराने ढंग से ही तराई के पास के प्रदेश में तैयार किया जाता है किन्तु बरेला में कत्थे का आधुनिक ढंग का एक बड़ा कारखाना भी. है । भारतीय वनों में ऐसे बहुत से वृक्ष हैं जिनकी छाल या फल चमड़ा कमाने के उपयोग में आते हैं। मैरोबालनस ( Myro. चमड़ा कमाने balans ) नामक फल इसमें विशेष महत्वपर्ण है। के पदार्थ विदेशों में इस फल की बहुत मांग है और प्रतिवर्ष लगभग एक करोड रुपये के यह फल विदेशों को भेजे जाते हैं। मैरीवालनस के अतिरिक्त भारतवर्ष में बवूल और तुरवद वृक्ष की छाल चमड़ा कमाने के लिए विशेष उपयोगी है। बबूल भारतवर्ष के सूखे प्रदेशों और तुरवद दक्षिण पश्चिम भारत में पाया जाता है। काग: लुब्दी ( Pulp ) से तैयार किया जाता है। लुब्दी भिन्न भिन्न नरम लकड़ियों, घासों, तथा अन्य वन पदार्थों से तैयार . .