वन सम्पत्ति २६७ इतनी ऊँचाई पर हैं और ऐसे स्थानों पर स्थित हैं कि, उन तक पहुँचना सरल नहीं है। उदाहरण के लिए ऊँचे हिमालय के वनों तथा सुन्दर. वन के वनों तक पहुँचने के मार्ग नहीं है। वनों से लकड़ी लाने के लिए जब तक सुविधाजनक मार्ग न हों तब तक उनका ठीक उपयोग नहीं हो सकता। योरोप तथा अमेरिका के वनों में जाड़े का बर्फ सस्ता और सरल मार्ग' उपस्थित कर देता है । जब बर्फ जम जाता है तो लड़की के लहों को बर्फ की ढालू. और चिकनी सड़क पर ऐंजिनों द्वारा खींचा जाता है और नदियों तक ले जाया जाता है जो स्वयं जाड़े में जम जाती हैं और जब इन नदियों का बर्फ पिघलता है तो वह लकड़ी स्वतः बह कर मैदानों में पहुँच जाती है। प्रकृति ने हमारे वनों में ऐसा सुविधाजनक मार्ग उपस्थित नहीं किया है। इस कारण वहाँ मार्ग बनाना पड़ता है और लकड़ी को वनों से लाने में बड़ी कठिनाई उपस्थित होती है। भारत में दो प्रकार के मार्गों से लकड़ी वनों से लाई जाती है। एक स्थन्न मार्ग से दूसरे जलमार्ग से | स्थल मार्ग से लाई जाने वाली लकड़ी नीचे लिखे प्रकार से लाई जाती है :- (१) मनुष्यों द्वारा--जंगलों से जलाने की लकड़ी काट कर मनुष्य समीपवर्ती स्थानों में ले जाते हैं और वेचते हैं किन्तु यह थोड़े फासले के लिए ही उपयुक्त है। हिमालय के वन प्रदेश से स्लीपरो को नदियों तक मनुष्य ही लाते हैं जहां से उन्हें बहा दिया जाता है। इसी प्रकार बड़े बड़े लट्ठों को ढालू सड़कों पर लुढका दिया जाता है। (२) पशुवों द्वारा:-जहाँ वनों में सड़कें ठीक होती हैं बैलगाड़ियों द्वारा, तथा पशुओं पर लाद कर लकड़ी लाई जाती है। मैसूर, अंडमन तथा बर्मा में हाथी बड़े बड़े लट्ठों को सूड से उठा कर नदी तक ले जाते हैं और नदी में लकड़ी बहा दी.जाती है। भैंसे पर भी लकड़ी लाद कर लाई जाती है। (३) यंत्रों द्वारा :-वनों में ट्रामगाड़ी, रस्सों के द्वारा (Ropeway:) लकड़ी, वनों से लाई जाती है । आसाम के ग्वालपाड़ा, डिवीजन, - पंजाब के छंगा मंगा वनों में ट्रामों का उपयोग लकड़ी लाने के लिए किया जाता हिमालय के वनों में रस्सों द्वारा लकड़ी लाने का प्रयोग बहुत से स्थानों पर है आसाम तथा सुन्दर वनों में लकड़ी को नदियों द्वारा वनों से लाया जाता है।
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वन- सम्पति