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आर्थिक भूगोल

- आर्थिक भूगोल भारत के वनों में महत्वपूर्ण अन्य उपयोगी पदार्थ भरे पड़े हैं। अभी तक उनका पूरा पूरा उपयोग नहीं हुआ है किन्तु भारत के अन्य भविष्य में उनका उद्योग-धंधों के लिए विशेष रूप से उपयोगी धनोत्पन्न उपयोग हो सकेगा। बांस, चमड़ा कमाने में काम पदार्थ ( Minor आने वाले फल और छालें, घास और तेल महत्वपूर्ण Products ) धंधों को जन्म देगा। ये वस्तुएँ. हमारे वनों में अनन्त राशि में भरी पड़ी हैं। यों तो भारतीय वनों में अनेक वस्तुएँ हैं किन्तु उनमें से नीचे लिखी मुख्य हैं जिनका व्यापारिक उपयोग हो सकता है:- बांस, घास, पत्ते जिनका उपयोग बीडी बनाने में होता है, रेशेदार प्रौधे, तेल उत्पन्न करने वाले बीज, रंग तैयार करने वाले बीज, फूल, छाल इत्यादि, चमड़ा कमाने में काम आने वाले पदार्थ, गोंद, लाख, रबर, जड़ी-बूटियाँ जिनसे दवायें बनती हैं, मसाले इत्यादि । इनमें से अधिकांश · वस्तुएँ प्रायद्वीप में मिलती हैं। बांस उम वनों में बहुत होता है जहाँ वर्षा बहुत होती है सूखे भागों में बांस नहीं होता । तेल वाले बीजों में महुअा महत्वपूर्ण है यह मध्यप्रान्त और बम्बई प्रान्त में बहुतायत से उत्पन्न होता है। लाख छोटा नागपूर के प्रदेश में बहुत उत्पन्न होती है। तेलों में चंदन का तेल बहुत महत्वपूर्ण है जो विशेष कर मैसूर में उत्पन्न होता है। चमड़ा कमाने के काम में आने वाले पदार्थो हड़ ( Myrobalans ) तथा बबूल की छाल महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त भारतीय वनों से हमें जलाने की लकड़ी मिलती है और उनमें लाखों पशु चरते हैं। भारत में खाना पकाने में कोयला काम में नहीं पाता इस कारण लकड़ी का ही ठपयोग होता है अतएव वनों का भारत के लिए विशेष महत्व है। यही नहीं भारत में चरागाहों की भी बहुत कमी है इस कारण भी वनों का पशुओं के चरने के लिए विशेष महत्व है। लाखों पशु इन वनों में चरते हैं पशु पालन वहाँ मुख्य धंधा है नहीं वन प्रदेश हैं। कर के विवरण से यह तो स्पष्ट हो गया कि भारत में वन सम्पत्ति यथेष्ट है। लगभग १ लाख वर्ग मील पर यह वन खड़े हैं। बर्मा के पृथक् हो जो से १३ लाख वर्ग मील का वन प्रदेश देश के अधिकार से जाता रहा । यद्यपि वन प्रदेश विस्तृत हैं किन्तु देश की जनसंख्या को देखते हुए अधिक नहीं कहे जा सकते । अपर से. कठिनाई यह है कि बहुत से वन