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वन- सम्पति

वन सम्पत्ति वन गंगा की घाटी के पास बहुत अधिक हैं और इन्हीं मैदानों में रेलवे लाइनों का जाल बिछा हुआ है इस कारण इसकी लड़की की मांग भी इस प्रदेश में बहुत होती है । साल की लकड़ी बहुत मज़बूत तथा कठोर होती है। अभी कुछ वर्षों पूर्व तक सागवान की लकड़ी भी भारतवर्ष की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा मूल्यवान लकड़ी थी! किन्तु बर्मा के सागवान (Tenk) भरत से पृथक् कर देने से अब सागवान का महत्व कम हो गया। क्योंकि वर्मा के जंगलों में ही सबसे अधिक सागवान पाया जाता है। संसार के अन्य देशों को बर्मा से ही सागवान की लकड़ी बाहर भेजी जाती है। भारतवर्ष में जो कुछ सागवान के वन मिलते हैं वे पश्चिमी घाट, नीलगिरी, मध्यभारत तथा मध्यपान्त में मिलते हैं । पश्चिमी घाट के वनों से कुछ सागवान बाहर भेजा जाता है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित पतझड़ वाले वृक्ष भी महत्त्वपूर्ण हैं। यह वृक्ष देश के उस भाग में सर्वत्र मिलता है जहाँ वर्षा कम होती है। इसको लकड़ी इमारत तथा लकड़ी का सामान शीशम बनाने के काम आती है। भारतवर्ष वन सम्पत्ति की दृष्टि से धनी देश है। देश की लगभग २० भारतवर्ष में वनों प्रतिशत भूमि पर वन खड़े हुए हैं। भिन्न भिन्न प्रान्तों का विस्तार में वनों का विस्तार इस प्रकार है। वन प्रदेशों का क्षेत्रफल प्रान्त धनों का क्षेत्रफल प्रान्त के क्षेत्रफल वर्ग मील में मदरास १५, २४५ १२.२ बम्बई १२,९६८ १७.१ सिंघ २५ बंगाल १०, २०३ १४ संयुउप्रान्त ५, २५१ पंजाब ४,८४२ बिहार १,७८६ २.६ उडीसा १,६८५ मध्यप्रान्त १६,४१३ २१, ३६३ सीमाप्रान्त २८२ बिलोचिस्तान ८१३ १७ अजमेर १४२, ५.१ २३६ ५२७ का प्रतिशत १९.७ श्रासाम २१ कुर्ग