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वन-सम्पति

वन सम्पत्ति . जब वह भूसि कम उस्लाऊ हो जाती है तो उसको छोड कर दूसरे स्थान के जंगल को जलाकर खेती की जाती है। इस प्रकार वनों को नष्ट करने का क्रम चलता रहता है। भारतवर्ष में मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के वन पाये जाते हैं। इन वनों में वनस्पति ऊँचाई तथा जलवृष्टि के अनुसार भिन्न है । पूर्वीय हिमालय तथा आसाम में बलूत (Oak ) मैन- पर्वतीय गोलिया ( M.ingolias ) और लारेल ( Laurel ) (पहाड़ी) धन पाये जाते हैं। मध्य तथा उत्तर पश्चिम हिमालय (पंजाब, संयुक्तधान्त, काश्मीर तथा सीमा-प्रान्त ) में देवदारू, नीला पाइन (Blue pine ) और बलूत ( Oak ) के वृक्ष बहुतायत से मिलते हैं। देवदारू के ऊपर स्यूस ( Spruce ) तथा श्वेत सनोवर ( Silver-fir ) तथा नीचे चीर पाइन (Chir-pine ) मिलता है जिससे रेज़िन ( Resin ) निकाला जाता है। इसी रेजिन से तारपीन का तेल तथा बीरोजा तैयार किया जाता है। यदि देखा जाये तो मध्य तथा उत्तर-पश्चिम हिमालय के वन बहुत मूल्यवान हैं। इन वनों के मुख्य वृक्षों के सम्बंध में नीचे संक्षिप्त विवरण दिया जाता है । यह वृक्ष अधिकतर हिमालय के उत्तर-पश्चिम में तथा कुछ पूर्व में भी पाया जाता है। यह ७५०० से १०,००० फीट श्वेत सनोवर की ऊँचाई तक मिलता है । यह सदा हरे रहने वाला ( Silver-for नुकीली पत्ती (Conifer ) का वृक्ष होता है । इसको लम्बाई अधिक होती है. किन्तु लकड़ी नरम होती । इसका उपयोग पैकिंग, तख्तों, कागज की लुब्दी, तथा दियासलाई बनाने में होता है । यद्यपि यह वृक्ष बहुत अधिक पाया जाता है, किन्तु 'अभी तक इसका उपयोग बहुत कम हो सका है। इसका मुख्य कारण है कि वहाँ तक पहुंचने की सुविधा नहीं है । चिनाब तथा झेलम के रास्ते से ही इसको मैदान में लाया जाना है। अतएव इसका थोड़ा बहुत उपयोग पंजाब में ही होता है। भारतवर्ष में देवदारु की लकड़ी बहुत मूल्यवान है। देवदारु सदा हरा रहने वाला नुकीली पत्तियों का बहुत लम्बा वृक्ष देवदारु होता है। इसकी ऊँचाई १०० फीठ से ऊँची होती है। यह हिमालय में ५५०० से ५००० फीट की ऊँचाई तक पाया जाता है । संयुक्तप्रान्त, पंजाब, काश्मीर तथा सीमाप्रान्त में यह पाया जाता है। देवदारु की लकड़ी साधारण कठोर होती हैं। इसमें श्रा० भू०-१०। ७