पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/३८९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३७८
आर्थिक भूगोल

३७८. आर्थिक भूगोल इन चारों प्रकार की भूमि से प्रत्येक में तीन प्रकार की मिट्टो होती है। (१) चिकनी, (२) मटियार, (३) बलुई । जिस जमीन के परमाणुओं का आकार बहुत छोटा होता है वे एक दूसरे से सटे हुए रहते हैं और इनमें , से किसी भी दो परमाणुओं के बीच में बहुत कम स्थान होता है, तो उस ज़मीन को चिकनी मिट्टी कहते हैं । इस जमीन में पानी बहुत कठिनाई से प्रवेश करता है और अधिकतर उसके ऊपर ही रह जाता है। जो कुछ भी पानी इसके भीतर प्रवेश कर जाता है वह देर तक उसके अन्दर बना रहता है। इस प्रकार की चिकनी मिट्टी बिहार और बंगाल में पाई जाती है। इस पर धान और जूट की खेती खूब होती है। जब मिट्टी के परमाणु काफी बड़े होते हैं और दो परमाणुओं के बीच की जगह काफी होती है तो उस मिट्टी को बलुई मिट्टी कहते हैं। रेतीली मिट्टा में पानी बहुत आसानी से मिट्टी को पार करके नीचे पहुँच जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि इस मिट्टा में पानी अधिक देर तक नहीं ठहर सकता और इस पर खेती करने के लिए अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। ऐसी जमीन में बहुत कम पैदावार होती है । इसमें बाजरा, ज्वार इत्यादि साधारण अनाज ही उत्पन्न किए जा सकते हैं। दोमट या मटियार भूमि उसे कहते हैं जिसके परमाणु न तो चिकनी मिट्टी की तरह छोटे हों और न बलुई मिट्टी की तरह बड़े हों । यह मिट्टी खेती के लिए अन्य दोनों प्रकार की मिट्टियों से अच्छी होती है । इसमें सब प्रकार की फसलें उत्पन्न की जा सकती हैं। भारतवर्ष में प्रति किसान पीछे औसतन दो एकड़ से कुछ ही अधिक ज़मीन है। किन्तु अभी भी दो अरब से कुछ अधिक एकड़ भूमि जो कि खेती के योग्य है बिना जुती हुई पड़ी है । इसका मुख्य कारण यह है कि वह जमीन ऐसी जगहों में है जो मनुष्यों की आबादी से दूर है। इस खेतो. के योग्य भूमि ( जो बिना जुती पड़ी है) के अतिरिक्त ऐसी भी भूमि है जो कुछ कारणवश खेती के योग्य नहीं है । ऐसे ज़मीन पांच प्रकार की है (१) जहाँ वर्षा बहुत कम होती है । (२) जो दलदल हैं, (३) बीहड़ ज़मीन, (४) रेहर ज़मीन ( ५) पथरीली जमीन, जिसमें लोहा और कोयला अधिक पाया जाता है। भारतवर्ष में कुछ ऐसी ज़मीन हैं जहाँ पानी बिलकुल न मिलने से वहाँ खेती नहीं हो सकती । ऐसी भूमि पंजाब के दक्षिण-पश्चिम, सिंध, राजपूताना, मध्यभारत तथा दक्षिण की उच्च सम भूमि में पाई जाती है । पंजाब और