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भारतवर्ष की प्रकृति

भारतवर्ष की प्रकृति ३७१ तराई का विस्तार पूर्व में अधिक जलवृष्टि के कारण अधिक है पश्चिम में वह बहुत कम है। हिमालय का हमारे देश के आर्थिक जीवन पर गहरा प्रभाव . पड़ता है। हिमालय का भारत के जलवायु पर भारत पर हिमालय गहरा प्रभाव है। भारत के उत्तरी भाग में जो वर्षा का प्रभाव होती है उसका मुख्य कारण हिमालय पर्वत ही हैं। मानसून इन पहाड़ों से टकराकर सारा पानी उत्तर के मैदानों में गिरा देती है। यदि उत्तर में हिमालय की श्रेणियों न होती तो मानसून हवायें उत्तर भारत को पार करके चली जाती और वह सूखा रेगिस्तान बन जाता । केवल हिमालय से यही लाभ नहीं है वरन उसका ढाल और जल का बहाव इस प्रकार का है कि जो नदियों भारत की सीमा के बाहर उत्तर तिब्बत से निकलती हैं वे भी दक्षिण की ओर मुड़कर भारत के मैदानों में प्राजाती हैं। इस प्रकार वर्षा भारतवर्ष की ओर होती है और जो वर्षा भारत की सीमा के बाहर होती है उन सब का लाभ भारत को मिलता है । हिमालय से निकली हुई न देयों पर ही हमारे देश का मुख्य धंधा खेती निर्भर है। हिमालय पर बर्फ जमी रहने के कारण उससे निकली हुई नदियों में गरमियों में भी यथेष्ट जन्न रहता है जिससे सिंचाई होती है। हिमालय उत्तर की अत्यन्त ठंडी हवाओं को उत्तर के मैदानों में आने से रोक लेता है। यदि उत्तर में हिमालय की ऊंची श्रेणियों न होती तो उन ठंडी हवाओं से उत्तर के मैदानों की खेती को बहुत हानि पहुँचती । इसके अतिरिक्त उन पहाड़ों पर जो सघन वन है उनमें बहुमूल्य लकड़ी, घास, जड़ी बूटियों, छाल, फल, गोंद, इत्यादि पदार्थ अनन्त राशि में भरे पड़े हैं उनका बहुत से धंधों में कच्चे पदार्थ ( Raw material ) के रूप में उपयोग होता है (हिमालय की वन सम्पत्ति के विषय में आगे विस्तारपूर्वक लिखा गया है) जो कुछ भी हिमालय को वनसम्पत्ति के विषय में हमें ज्ञात है उससे यह.तो कहा ही जा सकता है कि प्रकृति ने इन वनों में अटूट सम्पत्ति भरदी है। देश के बहुत से धंधे जैसे कागज़, दियासलाई, तारपीन का तेल इत्यादि वनों की लकड़ी पर ही निर्मर हैं। हिमालय ने भारत की प्राकृतिक सीमा बना दी है और विदेशी याक्रमण से भारत की रक्षा का प्रबंध कर दिया है। केवल उत्तर पश्चिम में जो बोलन और खैबर के दरें ही ऐसे खुले मार्ग हैं कि जिनसे भारत का अपने पड़ोसी राष्ट्रों से सम्बन्ध स्थापित होगया है । शताब्दियों से भारत के अपने पड़ोसी