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आर्थिक भूगोल के सिद्धान्त

आर्थिक भूगोल के सिद्धान्त ऐसे स्थानों की आवश्यकता है जहाँ छुट्टी के दिनों में नागरिक अपने स्वास्थ्य तथा मनोरंजन के लिए जाकर कुछ दिनों रहें । योरोप में पहाड़ी प्रदेश तथा समुद्र के किनारे प्राकृतिक सौंदर्भ के इन स्थानों पर छोटे छोटे सुन्दर शहर बस गये हैं। जहाँ वर्ष में कुछ दिनों के लिए घने आवाद नगरों के लोग जाकर रहते हैं। भारतवर्ष में मैदानों की भीषण गरमी से घबराकर अंग्रेजों ने पहाड़ी स्थानों पर हिल स्टेशन बसाये हैं. जहाँ गरमियों में सरकारी दफ्तर ले जाये जाते हैं तथा जनता भी जाकर रहती है। . खनिज प्रदेश में भी शहर बस जाते हैं जहाँ से आस पास की खानों से खनिज केन्द्र निकली हुई धातु बाहर भेजी जाती है। भारतवर्ष में (Mining रानीगंज, प्रासंसोल और झरिया ऐसे स्थान हैं। towns) ऊपर लिखे हुये कारणों के अतिरिक्त राजधानी बन जाने से भी नगर की जनसंख्या बढ़ने लगती है। परन्तु आज कल राजधानी होने से कोई नगर इतना बड़ा नहीं होता जितना औद्योगिक केन्द्र होने से। बम्बई और कलकत्ता इसी कारण देहली से बड़े हैं। भारतवर्ष में तीर्थस्थान भी बड़े नगर बन जाते हैं क्योंकि प्रतिवर्ष वहाँ बहुत से यात्री आते हैं, बनारस, हरिद्वार, मथुरा इत्यादि स्थानों का महत्व केवल तीर्थस्थान होने के कारण ही है। जिन स्थानों में कच्चा माल (Raw material) उत्पन्न होता है अथवा जिन व्यापारिक मंडियों में वह बिकने को आता है वहीं धंधों का कभी कभी धन्धे भी खड़े हो जाते हैं। किन्तु यह स्थानीय करण आवश्यक नहीं है। कभी कमी धन्धे कच्चे माल के (Location or उत्पत्ति स्थान से बहुत दूर स्थापित किये जाते हैं। manufac- कोई धन्धा किसी स्थान विशेष पर क्यों उन्नत होता tures ) है इसके बहुत से कारण हैं। किन्तु धन्धों के स्थानीय करण ( Localisation of industries ) पर . भौगोलिक परिस्थिति का बहुत बड़ा प्रभाव होता है। धन्धों कारखानों को स्थापित करते समय प्रत्येक व्यवसायी कुछ सुविधाओं का विचार कर लेता है। किसी भी धन्धे के लिए निम्नलिखित सुविधाओं की आवश्यकता होती है।