आर्थिक भूगोल ऊँचे मैदानों पर जहां सिंचाई की सुविधा नहीं है गेहूँ, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का और बालू उत्पन्न होता है। .. जापान संसार में चावल उत्पन करने वालों में तीसरा स्थान रखता है। फिर भी जापान प्रति वर्ष बहुत सा मँगाताचावल है। चावल की खेती करोड़ों जापानियों का भोजन केवल चावल और मछली है। जापानी प्रातः काल नाश्ते में दोपहर के भोजन में और रात्रि के भोजन में चावल ही खाते हैं। चावल ऊँचे प्रदेशों और नीचे मैदानों पर उत्पन्न होता है। जितनी भूमि पर खेती होती है उसके ५१ प्रतिशत भूमि पर चावल उत्पन्न होता है। एप्रिल के महीने में धान को नर्सरी के पौधे में बो दिया जाता है और मई महीने में नर्सरियों में धान के पौधे लहलहाने लगते हैं। जब कि धान नर्सरियों में उगता है खेतों को जोतने में लगे रहते हैं । जून के महीने में चावल को नर्सरी से उखाड़ कर खेतों में लगाया जाता है । उस समय खेतों में बच्चे, स्त्री पुरुष सभी लगे रहते हैं और अक्टोबर और नवम्बर में धान को काटा जाता है । जाड़े में धान के खेतों पर गेहूँ और जौ उत्पन्न किया जाता है । भोज्य पदार्थों को यदि छोड़ दें तो जापान की मुख्य पैदावार शहतूत है । शहतूत के पत्तों पर रेशम के कीड़े को पालना यहाँ के किसानों का मुख्य धन्धा है । शहतूत का वृक्ष हान्श्यू द्वीप के मध्य में बहुत अधिक होता है । जापान के उतरी भाग में अधिक ठंड पड़ने के कारण बसंत में शहतूत की पत्तियां नष्ट हो जाती हैं। इस कारण उत्तर में यह धंधा महत्वपूर्ण नहीं है । रेशम के धंधे की इतनी अधिक उन्नति का कारण यहाँ सस्ते मजदूरों का होना तथा राज्य का प्रोत्साहन है । इनके अतिरिक्त कुछ तम्बाखू, सन और लाही भी यहाँ उत्पन होती है। जापान में मछली बहुत खाई जाती है। यहाँ के समुद्र में बहुत प्रकार की मछलियों पाई जाती हैं । समुद्रतट के टूटे फूटे होने के कारण मछलियाँ पकड़ने में सुविधा होती है। समुद्रतट के लाखों मनुष्य इस धंधे में लगे हुए हैं। किसान भी इस धंधे को करते हैं। यहाँ हैरिंग ( Herring ), मैकेरल (Alackerel ), सारडीन (Sardine) तथा पीली पूंछ वाली मछली बहुत पाई जाती है। उत्तर प्रशान्त महासागर में ह ल ( Whale ) तथा सील (Seal ) भी पकही जाती है। जापान में खनिज पदार्थों की बहुत कमी है। खनिज पदार्थो की दृष्टि से जापान निर्धन देश है। कोयला जापान में कम पाया जाता है और जो कुछ भी कोयना है वह घटिया है । जो कुछ भी कोयला जापान में पाया जाता है वह
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आर्थिक भूगोल