श्राधिक भूगोल " है। गरमियों में मानसून दक्षिण से चलती है इस कारण दक्षिण पूर्व में सबसे अधिक वर्षा होती है। जापान में जलवायु की भिन्नता के कारण बहुत तरह के वन पाये जाते हैं। उत्तरीय भाग में शीतोष्या कटिबन्ध के वन (कानीरस ) पाये जाते हैं जिनमें पाइन फर ( सनोबर ), तपा सायप्रैस इत्यादि वृक्ष बहुत हैं। दक्षिण में कपूर, बलूत के वृक्ष अधिक मिलते हैं। फारमोसा में ऊष्ण कटिबन्ध के वृक्ष मिलते हैं। फारमोसा के वनों में बांस, वटवृक्ष और कपूर के वृक्ष बहुत पाये जाते हैं। जापान में काग़ज़ के काम का शहतूत वृक्ष बहुत पाया जाता है जिसकी लकड़ी के छातों तथा अन्य वस्तुओं के लिए कागज़ तैयार किया . जाता है। यद्यपि जापान को अधिकांश भूमि पथरीली है और वनों तथा एक प्रकार की बांस जैसी घास से आच्छादित होने के कारण खेती के योग्य नहीं है परन्तु फिर भी खेती जापान. का मुख्य धंधा है। देश के समस्त क्षेत्रफल का केवल १६ प्रतिशत खेती के योग्य है । खेती यहाँ बहुन गहरी होती है। छोटे बोटे खेतों पर किसान बहुत परिश्रम के साथ खेती करते हैं। खाद का बहुत अधिक उपयोग किया जाता है जिससे प्रति एकड़ अधिक से अधिक धान उत्पन्न किया जा सके । जापान की मुख्य पैदावार चावल और रेशम है। ज्वार, बाजरा, मका तथा जौ कम उपजाऊ भूमि पर उत्पन्न किया जाता है जहाँ सिंचाई की सुविधा नहीं होती। उत्तर के ठंडे प्रदेश में गेहूँ और सोयाबीन उत्पन्न की जाती है। पहाड़ के ढालों पर (विशेषकर प्रशान्त महासागर की ओर ) चाय के बाग हैं। चाय के बाग टोकियो से नागोया तक फैले हुए है। जापान चाय उत्पन्न करने वाले देशों में पांचवां स्थान रखता है किन्तु यहाँ भारत या सीलोन की भाँति चाय के बड़े बड़े बाग नहीं है केवल छोटे छोटे एक दो एकड़ के खेत हैं जहाँ चाय के पेड़ पैदा किये जाते हैं। जापान की आबादी बहुत धनी है । अतएव खाद्य पदार्थ उत्पन्न करने में ही किसान सारी शक्ति लगाता है । कन्चा माल, जापान में ,रेशम के अतिरिक्त उत्पन्न नहीं किया जाता है। परन्तु जापान संसार में सबसे अधिक कच्चा रेशम उत्पन्न करता और विदेशों को भेजता है । दक्षिण जापान की गरम तथा नम जलवायु रेशम के कीड़े पालने के लिये सर्वथा उपयुक्त है। शहतूत के वृक्ष को यहां बढ़ने नहीं देते वरन छोट छाँट कर माड़ी बना देते है जिससे कि वह अधिक से अधिक पत्तियां उत्पन्न कर सके । भूमि की कमी के कारण किसान शहतूत की झाड़ियों के बीच में अपनी फसलें बोता है साधारणत: शहतूत के पेड़ की छाया से फसल की बढ़वार रुक जावे किन्तु
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आर्थिक भूगोल