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आर्थिक भूगोल

- , २५४ आर्थिक भूगोल प्रत्येक देश आयात पदार्थो ( Imports ) का मूल्य पदार्थों का निर्यात ( Export ) करके चुकाता है। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि कोई देश जितने मूल्य का माल वाहर से मँगाता है ठीक उतने ही मूल्य का माल बाहर भेजेगा, कम या ज्यादा नहीं भेजेगा । किसी निश्चित समय में कोई देश जितना माल बाहर से मँगाता है उससे अधिक या कम बाहर भेजता है। इस अंतर को व्यापार का अंतर ( Balance of Trade ) कहते हैं। व्यापार का अन्तर किसी देश के पक्ष अथवा विपक्ष में हो सकता है। किन्तु अन्ततः आयात और निर्यात बराबर हो जाते हैं। आधुनिक युग में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की अत्यधिक उन्नति हुई है। इस अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को द्रव्य ( Money ) के चलन, बिल (हुँडी) के प्रचार, बैंकिंग की सुविधा, समुद्री चीमा, जहाज, रेल तथा हवाई मार्ग की सुविधाओं, तार, बेतार, तथा रेडियो के आविष्कार से बहुत प्रोत्साहन मिला है। इनके कारण बाज़ार भाव एक क्षण में सब देशों में प्रगट हो जाता है। माल भेजने की सुविधा हो गई है और लेन देन का हिसाब .आसानी से निबट जाता है। यदि ये सब सुविधायें न होती तो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार इतना नहीं बढ़ पाता। जहाँ ऊपर बताई हुई सुविधाओं से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन मिला है वहाँ कुछ ऐसी बाते भी हैं जिनसे व्यापार में रुकावट पड़ती है। प्रत्येक देश अाज अपने उद्योग-धन्धे की उन्नति का प्रयत्न कर रहा है अतएव बाहर से आने वाले माल पर चुंगी (कर) बिठाई जाती है । कभी-कभी बाहर से आने वाले माल पर इतना अधिक कर लगा दिया जाता है कि वह देश में विक ही न सके । इस संरक्षण नीति (Protection) के कारण व्यापार में रुकावट पड़ती है । इसके अतिरिक्त व्यापारिक समझौते तथा संधिया ( Commercial agreements ) भी व्यापार के स्वाभाविक प्रवाह को रोकते हैं। इन सब के ऊपर यह जो आये दिन युद्ध होते रहते हैं यह व्यापार को सबसे अधिक हानि पहुंचाते हैं। फिर भी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार होता है और होता रहेगा क्योंकि यह प्राकृतिक है। व्यापार और भौगोलिक परिस्थितियां व्यापार पर भौगोलिक तथा सामाजिक परिस्थितियों का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। अतएव हम यहाँ उनका अध्ययन करेंगे।