व्यापार . . धंधों की ओर अधिक ध्यान देता है जिनमें उसे सबसे अधिक अनुकूलता होती है। यदि किसी देश में जनसंख्या बहुत कम है और प्रकृति की देन अर्थात् उपजाऊ भूमि, खेती के योग्य जलवायु, यथेष्ट खनिज, तथा वन-सम्पति है तो वहाँ खेती तथा कच्चा माल उत्पन्न करने के धंधे अर्थात् मुख्य धंधे ( Primary Industries ) स्थापित होंगे । किसी देश में क्या-क्या वस्तु उत्पन्न होगी यह वहाँ की . भूमि तथा जलवायु निर्धारित करती है। किसी देश में कौन से धंधे स्थापित होंगे यह वहाँ के जलवायु, शक्ति के साधन, मजदूरों की कुशलता, गमनागमन के साधन, तथा कच्चे माल के प्राप्त करने की सुविधा पर निर्भर है। प्रकृति की देन तथा किसी भी देश की सभ्यता का वहाँ के धंधों पर मुख्य प्रगव पड़ता है। यह तो पहले परिच्छेद में ही हम लिख चुके हैं कि मनुष्य अपनी भौगोलिक परिस्थिति की उपज है । शीतोष्ण कटिबन्ध तथा ऊष्ण कटिबन्ध के वह भाग जो विषुवत रेखा के अधिक समीप नहीं है वहाँ के रहने वाले क्षमता वाले होते हैं। यही कारण है कि इन देशों में व्यापार और उद्योग धंधों की अधिकता है । विषुवत रेखा पर स्थित प्रदेशों के रहने वाले व्यापार तथा धंधों के प्रति अधिक अमिरुचि नहीं रखते क्योंकि वहाँ जीवन की आवश्यकतायें थोड़ी होती हैं और वह भी बिना अधिक श्रम किए ही पूरी हो जाती हैं। जिन देशों का विस्तार कम है उनका प्रति मनुष्य पीछे विदेशी व्यापार का औसत अधिक है। इसका मुख्य कारण यह है कि देश जितना ही छोटा होगा उसका जलवायु तथा भूमि सब भागों में एक सी ही होगी । अर्थात् भूमि और जलवायु की भिन्नता कम होगी । इस कारण भिन्न-भिन्न प्रकार की फसलें न उत्पन्न हो सकेंगी और न भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुयें ही तैयार हो सकेंगी । उदाहरण के लिए ब्रिटेन को ले लें। इसके विपरीत चीन जैसे महादेश में उत्तर से लेकर दक्षिण तक भिन्न-भिन्न प्रकार की जलवायु तथा भूमि है। अतएव वहाँ गरम और ठंडे देशों की सभी पैदावारें हो सकती हैं। अस्तु उसे बाहर से कम वस्तुयें मँगाने की आवश्यकता पड़ती है । जो बहुत ही छोटे देश हैं उनका विदेशी व्यापार सबसे अधिक है। ब्रिटेन बैलजियम की अपेक्षा बड़ा देश है । इसी कारण प्रति मनुष्य पीछे ब्रिटेन का व्यापार बैलिजयम से कम है । फाकलैंड ( Falkland ) द्वीप . में भेड़ चराने के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता । यही कारण है कि इस छोटे से द्वीप का वैदेशिक व्यापार प्रति मनुष्य पीछे बहुत अधिक है।
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