गौण उद्योग-धन्धे २२९ कातते समय तथा कपड़ा बिनते समय वायु में नमी होना अत्यन्त आवश्यक है । यदि वायु शुष्क होगी तो तार टूट जावेंगे। जितना अधिक बारीक सूत होगा उतना ही नमी की अधिक श्रावश्यकता होगी। लंकाशायर की सूती कपड़े का धंधा जलवायु के कारण हो वहाँ केन्द्रित है। इङ्गलैंड के पश्चिमी भाग में पहाड़ियों के कारण पूर्वीय शुष्क वायु नहीं पहुँच सकती । इसके अतिरिक्त सब महीनों में वर्षा होती है इस कारण वायु में नमी बनी रहती है। किन्तु अब पानी की भाप तैयार करके उसको पाइयों द्वारा कारखाने के कमरों में (जहाँ कताई बुनाई होती है ) छोड़ने से कारखाने के अंदर की वायु नम कर दी जाती है । इस नवीन पद्धति के श्राविष्कार से उन स्थानों में भी सूती धंधा पनप उठा है जहाँ की वायु शुष्क है। उदाहरण के लिर भारतवर्ष में अहमदाबाद इत्यादि केन्द्रों की वायु गर्मी के मौसम में बहुत शुष्क होती है किन्तु भाप के द्वारा कारखाने की वायु को नम बना लेते हैं। हो उससे कुछ खर्चा बढ़ जाता है । सूती कपड़े के धंधे में पानी की भी आवश्यकता पड़ती है। भिन्न भिन्न धोने की क्रियात्रों में पानी की आवश्यकता होती है अतएव जहां पानी की बहुतायत होती है वहाँ धंधे को स्थापित करने में सुविधा होती है। लंकाशायर में सूती कपड़े के कारखाने अधिकतर नहरों अथवा नदियों के किनारे बसे हुए हैं। परन्तु पानी धंधे के लिए नम वायु की तुलना में कम महत्त्वपूर्ण है। कुशल बुनकरों (Wenvers) तथा अन्य मजदूरों के ऊपर भी कपड़े का धंधा बहुत कुछ निर्भर रहता है। इङ्गलैंड में जो सूती कपड़े का धंधा इतना अधिक उन्नति कर गया है, और पैनाइन ( Pennine ) प्रदेश में जो यह धंधा केन्द्रित हो गया उसका मुख्य कारण यह है कि वहाँ ऊनी कपड़े का धंधा पहले से ही उन्नत अवस्था में था, तथा ऊनी कपड़ों को बुनने वाले कुशल बुनकर मौजूद थे। आज भी जो लंशशायर केन्द्र अन्य सूती कपड़े के पेन्द्रों को प्रतिस्पर्दा में खड़ा हुआ है उसका मुख्य कारण यह है कि वहाँ कुशल बुनकर तथा अन्य कारीगर मिलते हैं। जापान के सूती धंधे को रेशमी कपड़ा बुनने वालों के कारण बहुत सहायता मिली है। भारतवर्ष में भी बम्बई तथा अहमदाबाद में अधिकांश जुलाहे और कारी जो कि पहिले हाथ कईं पर कपड़ा बुनते थे काम करते हैं। सूती कपड़े के धंधे के लिए तैयार माल बाज़ार तक ले जाने की सुविधा अत्यन्त आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। संसार के सभी प्रमुख सूती कपड़े के केन्द्र उन प्रदेशों से दूर हैं जहाँ कपड़े की मांग अधिक है। उदाहरण के लिए लंकाशायर के सूती कपड़ों के कारखानों का कपड़ा पूर्वीय देशों में बिकता
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गौण उधोग-धंधे