गौण उद्योग-धन्धे २१७ मिला ले तो पृथ्वी की समात्त उत्पत्ति का लगभग ९० प्रतिशत लोहा इन देशों में तैयार होता है। इनके अतिरिक्त फ्रांस, वैलजियम, स्वीडन तथा स्पेन में भी यह धन्धा उन्नत दशा में हैं। यह ध्यान में रखने की बात है कि जिन देशों में लोहे.और स्टील का धन्धा स्थापित हो चुका है वे ही औद्योगिक उन्नति कर सके हैं । यद्यपि दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और आस्ट्रेलिया में लोहा यथेष्ट मात्रा में मिलता है किन्तु यहाँ बहुत कम लोहा और स्टील तैयार होता है। संयुक्तराज्य अमेरिका में सबसे अधिक लोहा और रटील (पात ) तैयार किया जाता है। संयुक्तराज्य की लोहे की खानों संयुक्त राज्य में अनन्त राशि में लोहा भरा पड़ा है और समीप ही अमेरिका के लोहे कोयले की खाने हैं। श्रतएव यहाँ लोहे के .धन्धे की तथा. स्पात का स्थापना के लिए सभी सुविधायें मौजूद हैं। संयुक्तराज्य धन्धा अमेरिका में लोहे और स्पात (Steel ) का धन्धा मिसिसिपी. नदी के पूर्व में ही दिखलाई पड़ता है। क्योंकि पूर्वी भाग में ही लोहे और कोयले की ख में हैं। यही नहीं संयुक्तराज्य अमेरिका के पूर्वी भाग में ही देश के प्रधान श्रौद्योगिक केन्द्र हैं । अपलेशियन पर्वत माला के पास पास लोहे के बहुत से कारखाने स्थापित हैं जो प्रति वर्ष बहुत बड़ी राशि में लोहा और स्टील तैयार करते हैं। संयुक्तराज्य अमेरिका में पिट-बर्ग तथा श्रोहियो नदी की घाटी का प्रदेश लोहे तथा स्पात के धन्धों का मुख्य केन्द्र है। पिट्स्वर्ग तथा पिट्स्वर्ग को संसार में लोहे के धन्धे का सबसे बड़ा प्रोहियो का प्रदेश केन्द्र होने का गौरव प्राप्त है । पिट्स्वर्ग के समीर ही कोयले की खाने हैं और लोहा भी मिलता है। इस कारण लोहे का धन्धा आरम्भ में यहाँ स्थापित हो गया । श्रोहियो नदी की घाटी के मुंह पर स्थित होने के कारण यहाँ लोहा तथा कोयला आसानी से आ सकता है। यही नहीं तैपार माल को यहाँ से अन्य केन्द्रों तक ले जाने की भी सुविधा है। इस कारण यहाँ धन्धा खूब चमक उठा। अब यद्यपि कच्चा लोहा मुख्यतः झील प्रदेश से आता है. किन्तु फिर भी धन्धे को क्षति नहीं पहुँची । क्योंकि लोहे को दूरस्थ खानों से लाने के लिए यातायात.का उत्तम प्रबंध कर दिया गया है जिसे पिटस्वर्ग के कारखानों तक झील प्रदेश से लोहा लाने में अधिक व्यय नहीं होता। फिर भी पिट्स्वर्ग अर्थात् उत्तरी.बालेसियन प्रदेश की यही. एक कमी है। उत्तम कोयले का समीप ही मिलना नदी का जल तथा उससे यातायात की सुविधा, प्रा० भू०-२८
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गौण उधोग-धंधे