. १७२ आर्थिक भूगोल जुट एक प्रकार के लम्बे पौधे का छिलका होता है। इस रेशेदार छिलके को कातकर सुतली तैयार की जाती है और जूट (Jute ) बोरे बनाये जाते हैं। जूट की खेती के लिए अति वृष्टि तथा अधिक गरमी की आवश्यकता होती है। जूट की खेती से भूमि शीघ्र ही कमजोर हो जाती है। इस कारण जूट की खेती उन्हीं स्थानों पर की जा सकती है जहाँ प्रति वर्ष नदियाँ उपजाऊ मिट्टी लाकर जमा कर देती हैं। जो भूमि प्रति वर्ष प्रकृति की सहायता से उपजाऊ मिट्टी पा जाती हो वही जूट की खेती के लिए उपयुक्त है। भारतवर्ष में भी केवल बंगाल, बिहार, नैपाल और आसाम के नीचे के मैदानों में ही जूट की खेती होती है । संसार में भारतवर्ष ही जुट उत्पन्न करता है । यद्यपि थोड़ा सा जूट चीन, फारमोसा, मलाया तथा जापान में भी उत्पन्न होता है किन्तु वह नगण्य है । संसार को जूट भारतवर्ष से ही जाता है । भारतवर्ष में कलकत्ते के समीप हुगली नदी के किनारे जूट के बड़े बड़े कारखाने स्थापित हैं जिनमें भारत का आधे से अधिक जूट खप जाता है । शेष जूट बाहर भेजा जाता है। जूट मँगाने वालों में ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, संयुक्तराज्य अमेरिका तया इटली मुख्य हैं । युद्ध के समय जर्मनी से व्यापार बंद है। कपास के बाद सन ही मुख्य रेशेदार पदार्थ हैं। इसके छिलके से मोटे कपड़े ( Linen ) रस्सी तथा अन्य वस्तुयें बनाई सन ( Flax) जाती हैं। सन शीतोष्ण कटिबंध ( Temperate zone ) की पैदावार है परन्तु इसकी खेती मिन्न प्रकार के जलवायु में भी हो सकती है। सन की खेती के लिए उपजाऊ भूमि और जल को अत्यन्त आवश्यकता है । सन भी भूमि को शीघ्र ही निर्बल बना डानना है इस कारण इसकी खेती उपजाऊ भूमि पर ही हो सकती है। सन का बीज भी व्यापारिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उसका तेल निकाला जाता है जो कि बहुत से उपयोग में आता है। परन्तु सन की खेती की विशेषता यह है कि यदि बीज अधिक उत्पन्न करने का प्रयत्न किया जाये तो छिन्नका कम और घटिया होता है और यदि छिलके की उत्पत्ति बढ़ाने का प्रयत्न किया जाये तो बीज को फसल कम होती है। सन की खेती में भी मजदूरों की बहुत अधिक आवश्यकता होती है इस कारण इसकी खेती घने श्राबाद देशों में ही हो सकती है।
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आर्थिक भूगोल