१२४ धार्थिक भूगोल . तपा तालाब बनाने का क्रम जारी है। संसार में नील, निध, गंगा, पंजाब को नहरें, अन्य भरतीय नदियों से निकलने वाली नहरें, यांग्टसीकियांग तथा यूफैटीज़ और टाइग्रीस नदियों से बहुत अधिक सिंचाई होती है । सच तो यह है कि इन नदियों के समीपवर्ती प्रदेश इनके पानी से ही जीवित हैं। कुछ प्रदेश तो ऐसे मी हैं जो बहुत ही सूखे हैं। जहां वर्षा तो बहुत कम होती ही है साथ ही सिंचाई के साधन भी नहीं सूखी खेती होते वहाँ सूखी खेत। ( Dre furming ) के द्वारा (Dry farming) फसल उत्पन्न की जाती है। सूखी खेती में किसान बाहर के पानी का उपयोग नहीं करता वरन जो कुछ थोड़ा बहुत जल वर्षा के दिनों में गिरता है। उसका अधिक से अधिक उपयोग करने का प्रयत्न करता है। सूखी खेती ( Dry farming ) में किसान फसल काटने के उपरान्त ही खेत को खूब गहरा जोत देता है जिससे जो भी वर्षा का जल गिरे वह इधर उधर न बह कर पृथ्वी में सूख जाय । यही नहीं किसान समय समय पर भूमि को जोतता रहता है जिससे व्यर्थ पौधे उग कर भूमि को नष्ट न कर दें। इसके अतिरिक्त वह भूमि की ऊपरी सतह की मिट्टी को बहुत ही बारीक कर देता है जिससे पानी भाप बन कर न उड़ सके । सूखी खेती प्रति वर्ष नहीं होती । कहीं कहीं एक वर्ष छोड़ कर दूसरे वर्ष खेती की जाती है जिससे फसल भूमि में जमा किए हुए पानी का उपयोग कर सके । सूखी खेती में इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि केवल वही फसल पैदा की जाय जो शुष्कता को सहन कर सके और जो कम खर्चीली हो। संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी भाग में सूग्वी खेती का खूब उपयोग किया गया है । गेहूँ, कपास, जौ, श्रोट, रुई तथा अन्य अनाज सूवी खेसी के द्वारा उन प्रदेशों में उत्पन्न किये जाते हैं जहाँ साधारणतया फसल उत्पन्न ही नहीं हो सकती। सबसे पहले सूखी खेती का प्रयोग संयुक्तराज्य में ही हुआ और अब क्रमशः यह उन प्रदेशों में फैल रही है जो बहुत सूखे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के अतिरिक्त कनाडा, पारट्रेलिया, पश्चिमीय एशिया, और दक्षिण अफ्रीका में सूखी खेती के द्वारा फसलें उत्पन्न की जाती हैं। सूखी खेती प्रत्येक देश में एक ही तरह से नहीं हो सकती क्योंकि प्रत्येक देश की जलवायु तथा भूमि एक सी नहीं होती । जलवायु तथा भूमि को भिन्नता के साथ सूवी खेती की पद्धति में भी हेर फेर करना पड़ता है। कहीं कहीं जहां धूप तेज़ पड़ती है वहाँ भूमि को अच्छी तरह से जोत कर वर्षा के पानी को उसमें सुखा कर ऊपर से पत्थर के टुकड़े बिछा दिये
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आर्थिक भूगोल