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आर्थिक भूगोल

धार्षिक भूगोल तत्व हैं जो पौधों को पैदा करने के लिए बहुत ज़रूरी हैं और जिन्हें पौधे अपनी जड़ों द्वारा खींचते हैं। इन आवश्यक तत्वों को हम दो भागों में बाट सकते हैं। पहले जो हवा और पानी से प्राप्त होते हैं जैसे कार्बन (Carbon ) श्रोषजन (Oxygen 1 उद्जन (Hydrogen ) और दूसरे वे जो मिट्टी से प्राप्त होते हैं, जैसे नोषजन ( Nitrogen ) हरिन ( Chlorine ) jak ( Sulphur ) gèlaga ( Potassium ) खटिक ( Calcium ) मगनीसियम ( Magnesium ) और लोहा इत्यादि। इस तरह पौधा मिट्टी से सदैव यह आवश्यक तत्व खींचता रहता है। परन्तु लगातार फसल उत्पन्न करने तथा पानी के साथ बह जाने के कारण यह तत्व कम होते रहते हैं। किसान का यह कर्तव्य है कि वह इन तत्वों की कमी को पूरा कर दे नहीं तो भूमि की उपजाऊ शक्ति घटती जावेगी। सब अच्छी मिट्टियों में वनस्पति का अंश ( Humus ) होना आवश्यक है । यद्यपि ह्य मस (Humus ) पौधे को स्वयं भोजन नहीं देता किन्तु वह नोषजन को सुरक्षित रखने तथा उससे वनस्पति नोषेत ( Nitrate) को उत्पन्न करने का काम करता है। खेती में मिट्टी का बहुत अधिक महत्व है यही कारण है कि खेती की अधिकांश समस्यायें मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने से संबंध रखती हैं। अब हम यहाँ उनके विषय में लिखेंगे । वर्षा का पानी मिट्टी के उपजाऊ अंश को बहा ले जाता है, इसी को मिट्टी का कटाव' कहते हैं। जहां वर्षा बहुत अधिक मिट्टी का कटाव और तेज़ होती है वहाँ यह समस्या उपस्थित हो जाती (Soil Erosion) है। यह कटाव दो प्रकार से होता है । (१) समतल कटाव ( Sheet erosion ) तथा गहरा कटाव (Gully erosion ) APTATT Aera ( Sheet erosion ) 1 हानिकर नहीं होता क्योंकि प्रति वर्ष थोड़ी सी ही मिट्टी पानी द्वारा बहती है यद्यपि इस प्रकार मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होती रहती है किन्तु उस पर खेती की जा सकता है। परन्तु गहरा कटाव ( Gully erosion ) बहुत भयंकर होता है। पानी जोर से बहकर भूमि को काट देता है, भूमि में गहरे नाले बन जाते हैं, प्रतिव अधिकाधिक भूमि कटती जाता है और थोड़े ही वर्षों में बहुत विस्तृत मैदान में नाले ही नाले बन जाते हैं। इसका फल यह होता है कि वह मारी भूमि खेती के लिए अनुपयुक्त हो जाती है । जमना और चम्बल के प्रदेश में इस प्रकार कटाव बहुत देखने को मिलता है। भूमि के