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आनन्द मठ


गीत

नहीं मनोरथ घर रहनेका,
कहलाके अवला नारी।
रण जय गावो सब जुड़ि आओ,
करो युद्धकी तैयारी
कौन तुम्हारा? कहांसे आये?
किसके हो? क्या कहलाओ?
चढ़ घोड़ेपर बांध अस्त्र मैं,
लड़न चली मत लौटाओ॥
हरि हरि कह तज मोह प्राणका,
समर करूंगी अति भारी।
नहीं मनोरथ घर रहनेका॥
कहां चला प्रिय प्राण हमारा,
मुझे छोड़के मत जाना।
महानादसे विजय दु'दुभी,
बजता है यह मनमाना॥
घोड़े उड़े देख जी उमड़ा,
युद्ध कामना है भारी।
नहीं मनोरथ घर रहनेका,
कहलाके अबला नारी॥




तीसरा परिच्छेद

दूसरे दिन आनन्दमठके भीतरवाले एक सुनसान मकानमें सन्तानोंके तीनों नायक भग्नोत्साह हो, बैठे बातें कर रहे थे। जीवानन्दने सत्यानन्दसे पूछा-"महाराज! देवता हम