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आनन्द मठ


जगह छोड़कर दस जगह तो गिरेगा नहीं, फिर एक गोलेके डरसे दस आदमियोंके भागनेका क्या काम है? पर एक गोला छूटते ही दलके दल मुसलमान भाग खड़े होते हैं। इधर सैकड़ों गोले देखकर भी एक अंग्रेजका बच्चा नहीं भागता।"

महेन्द्र-"तो क्या तुम लोगोंमें ये सब गुण मौजूद हैं?"

भवा०-"नहीं; पर गुण किली पेड़में फलते नहीं, अभ्यास करनेसे ही आते हैं।"

महेन्द्र-"क्या तुम लोग अभ्यास कर रहे हो?"

भवा०-"देखते नहीं, हम सब सन्यासी हैं? इसी अभ्यासके लिये हमलोगोंने सन्यास ग्रहण किया है। काम पूरा होनेपर, अभ्यास भी पूरा हो जायगा और हमलोग फिर गृहस्थ हो जायंगे। हमारे भी पुत्र कलत्र हैं।"

महेन्द्र-"तुम लोग तो इस बन्धनसे मुक्त होकर मायाका जाल काट चुके हो?"

भवा०-"सन्तानको झूठ नहीं बोलना चाहिये। मैं तुम्हारे सामने झूठी बड़ाई न करूंगा। मायाका जाल कौन काट सकता है? जो यह कहता है, कि मैंने मायाका फन्दा काट दिया है, उसे तो माया व्यापी ही नहीं, अथवा वह बड़ा भारी झूठा है, व्यर्थकी डींग मारता है। हमलोगोंने मायाका फन्दा नहीं काटा है, केवल व्रतकी रक्षा कर रहे हैं। क्या तुम भी सन्तान होना चाहते हो?

महेन्द्र-"बिना स्त्री कन्याका संवाद पाये मैं कुछ नहीं कह सकता।"

भवा०-"चलो तुम्हारी स्त्री कन्यासे मुलाकात करा दूं।" इतना कह, दोनों चल पड़े। भवानन्द फिर “वन्देमातरम्' गाने लगे। महेन्द्रका गला बड़ा सुरीला था; सङ्गीत विद्यामें कुछ अनुराग भी था, अतएव वे भी साथ ही साथ गाने लगे। उन्होंने देखा, कि गाते गाते आंखें आप ही आप भर आती हैं। महेन्द्र-