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आनन्द मठ


हिमकर निकर प्रकाशित रजनी,
कुसुमित लता ललित छबिवारी॥
दिन मनि उदित मुदित मन पक्षी।
विकसित कमल नयन सुखकारी॥

महेंद्र ने कहा—"यह देश है; माँ नहीं।"

भवानंद बोले,—"हम लोग अन्य कोई माता नहीं जानते। 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' जन्मभूमि ही हमारी माता है। हमारे माँ नहीं, पिता नहीं, बन्धु नहीं, कलत्र नहीं, पुत्र नहीं, घर नहीं, द्वार नहीं—हमारी तो बस वही 'सजल सफल श्यामल थल सुंदर मलय समीर चलय मनभावन' आदि गुणोंसे युक्ता सब कुछ हैं।"

भवानंदके भावको समझकर महेंद्रने कहा—"अच्छा तो एक बार गाओ।"

भवानंदने फिर गाना आरम्भ किया :—

बन्दौं भारत भूमि सुहावन।
सजल सफल श्यामल थल सुन्दर,
मलय समीर चलय मन भावन॥
हिमकर निकर प्रकाशित रजनी,
कुसुममित लता ललित छबिवारी।
दिनमनि उदित मुदित मन पक्षी,
विकसित कमल नयन सुखकारी॥
तीस कोटि सुत जाके गजित,
दुगुन करन करवाल उठाये
कौन कहत तोहि अवला जननी,
प्रबल प्रताप चहूं दिसि छाये॥
धर्म कर्म अरु मर्म तुही है,