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३५–रूसका पञ्चायती-राज्य
ले° प्रोफेसर प्राणनाथ विद्यालंकार

जिस बोल्शेविज्म की धूम इस समय संसार में मची हुई है, जिन बोल्शेविको का नाम सुनकर सारा यूरोप कांप रहा है उसी का यह इतिहास है। आरके अत्याचारों से पीड़ित प्रजा जारको गद्दी से हटाने में कैसे समर्थ हुई, मजदूर और किसानों ने किस प्रकार जार-शाही को उलटने में काम किया,आज उनकी क्या दशा है इत्यादि बातें जानने को कौन उत्सुक नहीं है! प्रजातन्त्र-राज्यकी महत्ता का बहुत ही सुन्दर वर्णन है। प्रजा की मर्जी बिना राज्य नहीं फल सकता और रूस ऐसा प्रबल राष्ट्र भी उलट दिया जा सकता है, अत्याचार और अन्याय का फल सदा बुरा होता है इत्यादि बातें बड़े सरल और नवीन तरीके से लिखी गयी हैं। लेनिन की बुद्धिमत्ता और कार्यशैली पढ़कर दांतों तले अंगुली दबानी पड़ती है। किस कठिनता और अध्यवसायसे उसने इसमें पंचायती राज्य स्थापित किया इसका विवरण पढ़कर मुर्दा दिल भी हाथो उछलने लगता है। १३६ पृ° की पुस्तक का मूल्य केवल ॥।) मात्र रखा गया है।

३६–टाल्स्टायकी कहानियां
सं° श्रीयुक्त प्रेमचन्दजी

यह महात्मा टाल्स्टाय की संसार-प्रसिद्ध कहानियों का हिन्दी अनुवाद है। युरोप की कोई ऐसी भाषा नहीं है जिसमें इनका अनुवाद न हो गया हो। इन कहानियों के जोड़ की कहानियां सिवा उपनिषदों के और कहीं नहीं है। इनकी भाषा जितनी सरल, भाव उतने ही गम्भीर है। इनका सर्वप्रधान गुण यह है कि ये सर्व-प्रिय है। धार्मिक और नैतिक भाव कूट कूटकर भरे है। विद्यालयों में छात्रों को यदि पढ़ाई जायें तो उनका बड़ा उपकार हो। किसानों को भी इनके पाठसे बड़ा लाभ होगा। पहले भी कहीं से इनका अनुवाद निकला था परन्तु सर्वप्रिय न होने के कारण उपन्यास सम्राट् श्रीयुक्त प्रेमचन्दजी-द्वारा सम्पादित कराकर निकाली गयी हैं। सर्वसाधारण के हाथो तक यह पुस्तक पहुंच माय इसीलिये मूल्य केवल १) रक्खा गया है।