३२–रागिणी
ले°: मराठी के प्रसिद्ध उपन्यासकार
श्रीयुक्त वामन मल्हारराव जोशी एम° ए°
अनुबादक–हिन्दी नवजीवन के सम्पादक तथा हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक
श्रीयुक्त पं° हरिभाऊ उपाध्याय
रागिणी है तो उपन्यास, परन्तु इसे केवल उपन्यास कहने से सन्तोष नहीं होता। क्योंकि आजकल उपन्यासों का काम केवल मनोरंजन और मनबहलाव होता है। इसको तर्क-शास्त्र और दर्शन-शास्त्र भी कह सकते हैं। इसमें जिज्ञासुओं के लिये जिज्ञासा, प्रेमियों के लिये प्रेम और अशान्त जनों के लिये विमल शान्ति मिलती है। वैराग्य खण्डका पाठ करने से मोह-माया और जगत की उलझनों से निकलकर मन में स्वाभाविक ही भक्ति-भाव उठने लगता है। देशभक्ति के भाव भी स्थान-स्थान पर वर्हित हैं। लेखक की कल्पना-शक्ति और प्रतिभा पुस्तक के प्रत्येक वाक्य से टपकती है। सभी पात्रों की पारस्परिक बातें और तर्क पढ़ पढ़कर मनोरजंन तो होता ही है, बुद्धि भी पुखर हो जाती है। भारतीय साहित्य में पहले तो 'मराठी' का ही स्थान ऊँचा है फिर मराठी- साहित्य में भी रागिणी एक रत्न है। भाषा और भाव की गम्भीरता सराहनीय है। उपाध्याय जी के द्वारा अनुवाद होने से हिन्दो में इसका महत्व और भी बढ़ गया है। लेखक की लेखनशैली, अनुवादक की भाषा-शैली जैसी सुन्दर है, आकार भी वैसा ही सुन्दर, छपाई वैसी ही साफ है। ऐसी सर्वांगपूर्ण सुन्दर पुस्तक आपके देखने में कम आवेगी। लगभग ८०० पृष्ठ की सजिल्द पुस्तक का मूल्य ४) और सुंदर रेशमी मनहनी जिल्दका ४॥)