२२–गोलमाल
जिन लोगों ने "चौबे का चिट्ठा" और "गोबर गणेशसंहिता" पढ़ी है, वे गोलमाल के मर्मको भलीभांति समझ सकते हैं। रा° ब° काली प्रसन्न घोष ने बंगला के 'भ्रान्ति विनोद' में समाज में प्रचलित कुछ बुराइयों की—जिसे वर्तमान समाज ने प्रायः अनिवार्य और क्षम्य मान लिया हे—मार्मिक भाषा में चुटकीली है। प्रत्येक निबन्ध अपने ढंग का निराला है। 'रसिकता और रसीली' बातों से लेकर 'दिगन्त मिलन' तक समाज की बुराइयों की आलोचना से भरा है। उसी प्रान्ति विनोद का यह गोलमाल हिन्दी अनुवाद है। २०० पृष्ठ, मूल्य १=)
२३–१८५७ ई° के गदर का इतिहास
ले° पण्डित शिवनारायण द्विवेदी
सिपाही विद्रोह क्यों हुआ? यह प्रश्न अभीतक प्रत्येक भारत- बासी के हृदय को आन्दोलित कर रहा है। कोई इसे सिपाहियों का क्षणिक जोश, कोई सिपाहियों की बेजड़ बुनियाद, धर्मभीरता और कोई इसे राजनीतिक कारण बतलाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक अनेक अंग्रेज इतिहासज्ञों की पुस्तकों की गवेषणापूर्ण छानबीन के बाद लिखी गयी है। पूरे प्रमाणसहित इसमें दिखलाया गया है कि सिपाहियों की क्रान्ति के लिये अंग्रेज अफसर पूर्णतः दोषी हैं और यदि उन्होंने शंष्टा की होती तो लार्ड डलहौजी की कुटिल और दोषपूर्ण नीति के रहते हुए भी इतना रक्तपात न हुआ होता। प्रस्तुत पुस्तक से इस बात का भी पता लगता है कि इस रक्तपात की भीषणता बढ़ाने में अंग्रेजों ने भी कोई रात उठा नहीं रखी थी। प्रथम भाग के सजिल्द प्रायः ६००पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य ३॥) द्वितीय भागकी सजिल्द प्रायः ८०० पृष्ठ का मूल्य ४॥)