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आनन्द मठ


"मैंने परगना सिपाहियों को हटाकर सीमा के नाके-नाके ब्रिगेड सिपाहियों के थाने कायम कर दिये हैं जो प्रान्त की रक्षा करते हैं। हर तीसरे महीने ये बदले जाते हैं इससे आशा है कि आगे चलकर उपद्रव न होने पायेगा, प्रान्त सुरक्षित रहेगा। चूंकि हम लोगों ने इनके हाथ से मालगुजारी वसूल करने का काम छीन लिया है, इसलिये हमारे आदमियों के अत्याचारों से भी लोग बच जायेंगे।"

फिर ३१ मार्च १७७५ को वारन हेस्टिंग्ज ने इन लोगों के बारे में निम्न पत्र लिखा था:—

"हाल में यहां पर संन्यासी कहलानेवाले कुछ थोड़े से उपद्रव-कारियों के मारे बड़ा हैरान होना पड़ा है। इन लोगों ने बड़े-बड़े दल बाँधकर सारे प्रान्त को तवाह कर दिया है। इन लोगों के उपद्रव और हम लोगों की रोकने की चेष्टा का हाल आपको हम लोगों के पत्रों और सलाहों से मालूम हो गया होगा। उन्हें देखने-से आपको मालूम हो जायगा कि गवर्नमेण्ट का कोई अपराध नहीं है। इस समय हमारी पाँच पलटने उनका पीछा कर रही हैं। मुझे आशा है कि वे अपनी करनी का पूरा पूरा फल पा जायेंगे, क्योंकि सिवा इस बात के कि वे भागने में बड़े तेज है, और किसी बात में वे हमारे आदमियों से चढे-बढ़े नहीं हैं। इन उपद्रवों का विस्तृत विवरण आपको रोचक न होगा, क्योंकि उनमें कोई महत्व नहीं है।"

(क्लगे के स्मरण-लेख भाग १ पृ° २६७)

उसी तारीख में हेस्टिंग्ज साहब ने सर जार्ज कोलब्रुक के नाम निम्नलिखित पत्र लिखा था:—

“पिछले पत्र में मैंने लिखा था कि जहाँ तक मालूम पड़ता है, संन्यासियों ने कम्पनी के अधिकारमुक्त प्रदेशों को खाली कर दिया