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आनन्द मठ

साहब-“एक आदमी तुमको गोदमें ले जायगा।"

शान्ति-"तू मुझे गोदमें बैठाकर ले जायगा, क्या मुझे लजा नहीं लगती?"

साहब-"किया मुसकिल? हम टुमको पांच साव रुपिया डेगा।"

शान्ति–“अच्छा, कौन जायगा? क्या तू हो जायगा?"

यह सुन, साहबने खड़े हुए लिण्डले नामक एक सिपाहीकी ओर अंगुलीसे इशारा कर कहा-"क्यों लिण्डले! नौजवान तुम जाओगे?"

लिण्डलेने शान्तिका रूप-यौवन देखकर कहा-“बड़ी खुशीसे।"

एक खूब बढ़िया अरबी घोड़ा कसकर तैयार किया गया। लिण्डले तैयार होकर चला गया। जब वह शान्तिका हाथ पकड़कर उसे घोड़ेपर चढ़ाने गया, तब शान्तिने कहा, "छिः छिः इतने आदमियोंके सामने? क्या मेरे लाज-शर्म नहीं? चलो, आगे बढ़ो; इस छावनीके बाहर चलो।"

लिण्डले घोड़ेपर सवार हो, धीरे-धारे घोड़ेको बढ़ा ले चला। शान्ति पीछे चलो। इसी तरह आगे पीछे चलते हुए वे लोग पड़ावके बाहर हो गये।

शिविरके बाहर आ, सुनसान मदान देखकर शान्ति लिण्डले के पैरपर पैर रखकर एक ही उछालमें घोड़ेपर चढ़ गयी। लिण्डलेने मुस्कराते हुए कहा, “टुम टो पक्का घोरसवार हाय।" शान्तिने कहा-"हम लोग ऐसे पक्के घुड़सवार हैं कि तुम लोगोंके साथ घोड़ा चढ़ते हमलोगोंको शर्म मालूम होती है। छिः! रिकाबपर पांव रखकर घोड़ा चढ़ना भी कोई घुड़सवारी है?"

यह सुन, लिण्डलेने अपनी हैकड़ी भरने के लिये झटपट रिकाब से पांव निकाल लिये। यह देखते ही शान्तिने उस बेवकूक अंगरेजके बच्चे के गलेमें हाथ डालकर उसे घोड़ेसे नीचे गिरा