अब मैं उसे कहांसे ढूंढ़ लाऊं? आपने कहा था, कि वह जीती है, इसीसे इतना भी जानता हूं। और कुछ मुझे नहीं मालूम।"
तब सत्यानन्दने नवीनानन्दको बुलाकर महेन्द्रसे कहा- “देखो, इनका नाम नवीनानन्द गोस्वामी है। ये बड़े ही पवित्रात्मा है और मेरे प्रिय शिष्य हैं। ये ही तुम्हें तुम्हारी कन्याका पता बता देंगे।" यह कह सत्यानन्दने शान्तिको इशारेसे कुछ कहा। उस इशारेको समझकर शांति वहांसे जाने लगी। यह देख, महेन्द्रने कहा-"अब तुमसे कहां देखादेखी होगी?"
शांतिने कहा-“मेरे आश्रममें चलिये।" यह कह, शान्ति आगे-आगे चली। महेन्द्र भी ब्रह्मचारीके पैर छू, बिदा मांग शान्तिके पीछे-पीछे चलकर उसके आश्रममें पहुंचे। उस समय रात बहुत बीत गयी थी, तोभी शान्ति सोने न जाकर नगरकी ओर चल पड़ी।
सबके चले जानेपर ब्रह्मचारी भूमिमें माथा टेके हुए मन-ही-मन जगदीश्वरका ध्यान करने लगे। क्रमसे सवेरा होनेको आ गया। इसी समय न जाने किसने आकर उनका सिर छूकर कहा-“मैं आ गया!"
ब्रह्मचारी उठ खड़े हुए और चकपकाये हुए बड़ी घबराहटके साथ बोले-"आप आ गये? क्यों? किस लिये?"
आनेवालेने कहा,-"दिन पूरे हो गये।"
ब्रह्मचारीने कहा,-"प्रभो, आज तो क्षमा कीजिये। आगामी माघी पूर्णिमाके दिन मैं आपकी आज्ञाका पालन करूंगा।"