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जिन लोगों में ऐसी रिवाज है उनमें दंपती का प्रेम नहीं होता, ईश्वर पर भी आदमी की भक्ति इसी लिये है कि उसकी बदली नहीं होती । नहीं तो लेग नित्य नया बनाकर उसे बदला करें। प्रथम तो पति में ऐसी खराबो ही क्या, जो हो भी वह उसकी इच्छा के अनुसार चलने में भलाई में बदल जायगी । और यदि उसमें चारी, अन्याय, व्यभिचारादि देाष आ पड़े। तो उन्हें सुधारना चाहिए। स्त्री का सुधारा पति अवश्य सुधर सकता है। पातिव्रत मात्र उसमें चाहिए । “हिन्दू गृहस्थ' और "बिगड़े का सुधार" देखिए।"

“मान लिया कि अच्छी स्त्रियाँ पति के ठिकाने ला सकती हैं परंतु विधवा की हमारे यहाँ नि:संदेह दुर्दशा है । उन पर घोर अत्याचार होता है। उनका विवाह अवश्य होना चाहिए |"

“विवाह उन विधवाओं का होता है जो शूद्र अथवा प्रति शुद्र हैं । उच्च वर्ग में बिलकुल अयोग्य है । जिनमें ऐसी चाल है उनमें से भी जो ऊँचे खयाल के हैं वे इस चाल से घृणा करते हैं । "तिरिया तेल हमीर हठ का सिद्धांत हिंदू नारियों के मन पर अंकित है। यदि विधवा विवाह का प्रचार किया जाय तो फल यह होगा कि दांपत्य प्रेम नष्ट हो जायगा । किसी न किसी कारण से आपस में कलह होते ही एक दूसरे को जहर देने पर उतारू होगा। ऐसा करके हत्या की संख्या न बढ़ाइए । शास्त्रों में भी इसी लिये इसका