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"राम राम! आपने तो बड़ी गंदी बात कह डाली।"

बस दंपती के एक शरीर का मर्द दहना अंग और औरत बाँया अंग हैं । दोनों अपना अपना काम आप आप करते हैं। किंतु दूसरे को जब मदद की आवश्यकता हो तब एक तैयार !"

"अच्छा ! यह भी समझ लिया । आपके विचार ठीक ही हैं। और यह तब ही हो सकता है जब कि पति में अगाध भक्ति हो, अनन्यता हो । पति भी पत्नी के अपना शरीर समझे । जिनमें स्वतंत्रता का भूत सवार हो गया है की अवश्य पति का आदर नहीं करती हैं । परंतु विवाह के विषय में आपकी क्या राय है?"

"इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले मैं आपको एक बार और सुझा देती हैं। यदि आपको सचमुच ऐसी गृहिणी बनना हो तो भारतवर्ष के इतिहास पुराणों का अवलोचन कीजिए । ऐसी रमणीयों के चरित्रों का संग्रह "सतीचरित्र संग्रह में देखिए । “आदर्श दंपती" "हिंदू गृहस्थ" "बिगड़े का सुधार" "विपत्ति की कसौटी" और स्वंतत्र रमा और परतंत्र लक्ष्मी" आदि अनेक ग्रंथ आपको मिलेंगे । रेनाल्ड के नावेले को फेंक दीजिए। ये आपके चरित्र के बिगाड़नेवाले हैं।

"बेशक ! अच्छा विवाह ?" "हाँ ! इस विषय में मेरी राय यह है कि स्त्री जाति कभी कुँवारी रहकर अपने सतीत्व का पालन नहीं कर सकती ।