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पेट भर गया। जब परमेश्वर ने आदमी और औरत को समान पैदा किया है तब पुरुषों के समान हमें स्वतंत्रता क्यों न मिले ?"

“नहीं ? समान पैदा नहीं किया । दोनों की बनावट में अंतर, दोनों के काम में अंतर और दोनों के विचार में अंतर है। यदि समान ही पैदा किया है तो शादी होने के बाद अपने शौहर के काम की बदली कर लेनी चाहिए। उनसे कह देना कि नारियों ने युगो तक गर्भ धारण करने की घोर यातना भोग ली अब नौ महीने तक पेट में बालक रखने की मेहनत तुम उठाओ । अब हम तुम्हारे, बदले बाहर जाकर कमाई का काम करेंगी ।"

"नहीं ! (लजाकर) ऐसा क्योंकर हो सकता है ? प्रकृति के विरुद्ध !"

"जब यह नहीं हो सकता तब बराबरी भी नहीं हो। सकती ! भेरी समझ में संसार में स्वतंत्र कोई नहीं है। प्रजा राजा की परतंत्र है, राजा परमेश्वर का परतंत्र है, स्त्रियाँ पुरुषों की परतंत्र हैं और पुरुष स्त्रियों के परतंत्र हैं, यहाँ तक कि एक व्यक्ति महाराजाधिराज होने पर भी खिदमतगारों का, नाई का, धोबी का और मेहतरों का परतंत्र है। और जो आपके से विचारवाली स्त्रियाँ परतंत्रता की वेड़ी तोड़कर स्वतंत्र बनना चाहती हैं वे पति का, घरवालो का, समाज का और राजा का दबाव न मानने से कामदेव की परतंत्र बनकर व्यभिचार करती हैं, क्रोध की परतंत्र होकर पाप करती हैं

आं हिं०---६