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कहते हुए वह भी नजर भर प्रेम के साथ उन पर द्वष्टि डालते हुए उसी समय जिस गाड़ी से ये लोग उतरे थे उसी में सवार हाकर बनारस चले गए। पंडित दीनबंधु के पत्र को प्रियानाथ ने पढ़कर "जैसा करता है वैसा पाता है ।" कहते हुए जंगले में हाथ डालकर दूसरे कंपार्टमेंट में प्रियंवदा की ओर फेंक दिया और पत्र को पढ़कर कुछ मुसकुराती हुई वह भी उसे अपनी जेब में डालकर चुप हो गई।

इससे पाठक ने समझ लिया होगा कि इस बार पंडित जी जुठे दर्जे में थे और पंडितायिन जुठे में। केवल इतना ही क्यो, गाड़ी में भीड़ की कसामसी से हर एक अदिमी को अलग अलग बैठना पड़ा था । इस तरह वहाँ से रवाना है--कर आगरे तक पहुँचने में इस पार्टी ने अलग अलग कंपार्टमेंद्र में बैठकर जो जो देखा उसे पृथक पृथक लिखकर विस्तार करने की आवश्यकता नहीं । तीसरे दर्जे में सवार होकर अधिक भीड़ के समय जो अनुभव होता है उसे सब जानते हैं। गत प्रकरणों में समय समय पर थोड़ा बहुत लिखा भी गया है । हाँ देखना यह है कि गाड़ी से उतरने पर प्रियंवदा प्राणप्यारे से क्या रिपोर्ट करे। खैर, घर पहुँचने की जल्दी में अयोध्या न जाने का दुःख सबको था।