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और सबसे बढ़कर पुलिस के भय से उसके द्वार पर इतनी भीड़ इकट्ठी होन्ने पर भी किसी का यह हियाब नहीं होता कि वह उनके मकान की चौखट के भीतर तो पैर रख सके ।

किंतु वास्तव में आज मामला क्या है ? जिस बैठक में अब तक दस बीस' आदमी आए और चले गए होते, जिसमें आसामियों की, कामकाजियों की और लेन देनवालों की प्रातःकाल से आवा जाही लगी रहती है। उसका दस बजे तक किवाड़ क्यों बंद है ? घर का किवाड़ बंद होकर भीतर से साँकङ्ग चढ़ रही है और आदमियों के भीतर फिर डोलने तक की आहट नहीं । हाँ ! भीतर से की भी सुरीली आवाज से कुछ गाने अथवा योही गुनगुना की भनक अवश्य आ रही हैं परंतु इसका मतलब क्या ? जिसे समय वहां खड़े हुए नर नारी इस प्रकार तर्क पर तर्क लगाकर अपने संदेह को पक्का कर रहे थे उस समय भीड़ को अपनी डाँट डपद से डराती, इस तरह मैदान करती पुलिस आ पहुँची । अब एक,दो ,दस, बीस कई एक आवाजे' दी गई परंतु जवाब नहीं । तब बढ़ई को बुलाकर किवाड़ तोड़ा गया । पुलिस ने कुँए के पास जाकर उसमें बिल्ली डाली परंतु थोड़े बहुत कूड़े करकट' के सिवाय बिल्ली खाली । यघपि घर की तलाशी लेने के लिये पुलिस जाकर जनाने और मर्दाने मकानों को देख सकती थी, जो मुकदमें पुलिस की दस्तंदाजी के हैं उनमें उसके अधिकार अपरिमित हैं किंतु चाहे संकोच