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को बाबा ने। इतिहास से, पुराणों से इस बात का पता लगाया है कि पहले ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया में हिंदुओं का राज्य था । जब तक वहाँ वणाश्रङ्ग धर्म का पालन होता था तब ही तक हिंदू वहाँ जाते ते थे । जब उस ओर श्त सनातनधर्म निर्वाह न देखकर वहाँ गोबधादि धर्म नाशक कार्य होते देखे तब ही प्राचीनों का अटक नदी के पार उतरने का निषेध करना पड़ा । विलायत जाने में लोग समुद्र-यात्रा की बाधा बतलाते हैं । यह भी बाधा सही है परंतु मैं इसे उतनी जोरदार नहीं समझता ! मैं मानता हूँ कि वह भूमि गोवधादि देषों से युगयुगांतरों में अपवित्र हो गई हैं इसलिये धर्मशास्त्र के मत से वहां का जाना अनुचित है भारतवर्ष में भी इसी कारण अकाल पर अकाल पड़ते हैं ।"

पंडित जी का इस विषय में जो मत था उन्होने अपने साथियों के संक्षेप से सुना दिया और गौड़बोले ने उनके कथन का अनुमोदन भी किया। दर्शन करने से अवश्य मन नहीं भदता किंतु यों ही करते करते चलने का दिन निकट आ गया । अब निश्चय हुआ कि जे कुछ कार्य अवशिष्ट है उसे एक दो दिन में निपटाकर यहाँ से विदा होना चाहिए। चलने की औरों का उतावल न थी । केवल तकाजा बूढे भगवानदास' का था । बस उसी के तकाजे से इन्होंने वहाँ से चलने की मंसूबा किया ।