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है। और इस समय की इतिहासप्रसिद्ध शांति का दुरुपयोग होता है,उस पर कुठाराघात है ।"

राजनीतिक कामों के विषय में वह प्रायः उदासीन से हैं । उनका मत है कि "जब इस विषय का आंदोलन करने में सैकड़ों बड़े बड़े आदमी दत्तचित्त हैं तब मैं अपना सिर क्यों खपाऊँ ?" किंतु जब उनसे इस विषय में कोई कुछ जिक छेड़ देता है तब वह कहा करते हैं...

“जिन बातों के देने का सरकार ने वादा कर लिया है। अथवा आप जिन पर अपना स्वत्व समझते हैं उन्हें सरकार से माँगें । जब माता पिता भी बेटे बेटी को रोने से रोटी देते हैं। तब राजा से माँगने में कोई बुराई नहीं है। तु ज्यों ज्यों माँगते जाते हो त्यो त्यों धीरे धीरे वह देती भर जाती है। किंतु काम वही करो जिससे तुम्हारे ‘‘नराण च नराधिप:" इस भगवद्वाक्य में बट्टा न लगे । भगवान् के इस वचन से जब राजा ईश्वर का स्वरूप है तब उसकी गवर्मेंट शरीर न होने पर भी उसका शरीर है। इसलिये नियमबद्ध आंदोलन करना आवश्यक और अच्छा है किंतु जो मुठमर्दी करनेवाले हैं, जो उपद्रव खड़े करके डरनेवाले हैं अथवा जो अपने मिया स्वार्थ के लिये औरों के प्राण लेने पर उतारू होते हैं। उनके बराबर दुनिया में कोई नीच नहीं,पामर नहीं ! वे राजा के कट्टर दुश्मन हैं। सचमुच देशद्रोही हैं । वे स्वयं अपनी नाक कटाकर औरों का अपशकुन करते हैं। उनसे अवश्य घृणा