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“हाँ सरकार लीजिए। उत्तर लीजिए और जो चाहे सो लीजिए। सब कुछ हाजिर है। अच्छा सुनिए। दबदबा जमाया नहीं था स्वभाव से उस पर पड़ गया हो तो जुदी बात है । और यदि पड़ा भी तो मेरे नाम का कार्ड पढ़कर एक के सुपरिटेंडेंट का ओहदा जानने से । बस ओदहा गया और दबदबा भी साथ ही चला गया। और पुलिस से मदद न लेने का कारण तू जानती है । बस रेल की यात्रा का अनुभव ।”

"खैर ! यह तो हुआ परंतु ट्रक देरी से क्यों आया ?"

“अरे इतनी चटपटी ! इतनी घबड़ाहट !! इस ट्रैक पर इतना प्रेम !!!"

"प्रेम न हो ? इसमें प्राणप्यारे की यादगार है। पहले दिन की बखशिश है !"

“अब तो ( हँसकर ) बड़ी बड़ी बखशिशें मिल गई’ !"

“हाँ ! मिल तो गई परंतु इस सिंगारदान का आनंद इसी में है। यह दांपत्य प्रेम के साहित्य-शास्त्र का प्रथम पाठ है। इसमें ऐसी सामर्थ्य है कि यह उस दिन का फोटो खड़ा कर देता है ।"

"अच्छा तो देरी से आने का कारण यह हुआ कि अखालत में पहुँचने पर इसका एक और दाबहार खड़ा हो गया था। इसके लिये वकील करने पड़े, गवाह और सुबूत पेश करने पड़े यहाँ तक कि जो जो चीजे' इसमें थी उनके खरीदने तक का सुबूत देना पड़ा।"