तिवारी खोलें ।"क्यामेंह बरसता था अथवा डाका पड़ गया जो चिल्ला चिल्लकर कान की चैलियां खड़ा डाली । खोंपड़ी खा डाली' ।” कहते हुए छोटे भैया ने आगंतुक के कुछ डांटा और "लीजिए साहब ! सँभालिए साहब ! लाइए रसीद और इनाम ?" कहकर उसने एक ट्रंक उनके आगे रख दिया। "हैं ट्रंक ? यह ट्रैक कैसा ? हमारा नहीं है। देखूं नाम ? हैं ! नाम तो भाई साहब का है !" यों कहकर कांतानाथ ने उसे सँभालने में कुछ अनाकानी की, तब पहें की ओट में भौजाई से इशारा पाकर उसे रख लिया और चपरासी को इनाम देकर विदा किया ।
उसके चले जाने के बाद ऊपर ले जाकर ट्रक खोला गया। देवर भाजाई ने मिलकर उसका एक एक करके सामान सँभाला तो सूची के अनुसार पुरा निकला। बस उधर जरूरी काम के लिये कांतानाथ चल दिए और इधर प्रियानाथ का आब्लिक समाप्त हुआ । आसन पर से उठकर पतिराम यहाँ आए और तब कुछ मुसकुराकर कहने लगे--
"आपका सामान सब आ गया ? राई रत्ती पुरा ? काजल टिकुली दुरुस्त ?"
“जी हाँ दुरुस्त । आज मानों लाख रुपए पा लिए ।"
"अच्छा पा लिए वे मुबारिक हो !"
“हाँ मुबारिक हो ! आपको मुबारिक हो। क्योंकि इसमें सामान भी तो आपका है ।"