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इनकी आवश्यकता है ! जिन समाज में वेश्याएं न हों उसके सौ गृहस्थ लेकर उनमें व्यभिचार कितना होता है, इनकी गणना कीजिए और अन्य हिंदू समाज के सौ गृहस्थों से तुलना लीजिए तब आपको मालूम है जायगा कि बेश्याएँ किस सिद्धांत पर सिरजी गई हैं। इस तरह वे अवश्य अपना आपा बिगाड़ रही हैं, अपना सर्वस्व नष्ट कर रही हैं किंतु हिंदूनारियों के सतीत्व की रक्षा करती हैं ! जैसे बड़े नगरों में सड़क के निकट जगह जगह पनाले बने हुए हैं, यदि वे बनाए जायें तो चित्तवृत्ति को शरीर के विकार को न रोक सकते पर लोग बाजार और गलियां को खराब कर डालें उसी तरह यदि वेश्याएँ हमारे समाज से उठा दी जायँ तो घर की बहू बेदियाँ बिगड़ेंगी ।”

“हाँ ! यह ठीक है परंतु आपकी दोनों राये परस्पर विरुद्ध हैं । इधर आप रंडियाँ रखना भी चाहते हैं और उधर रंडीबाजी बंद भी करवाते हैं । “दोउ एक संग न होइ भुबालू; हँसब ठठाइ फुलाउब गालू ।" दोनों बातें कैसे निबहेगी ।"

"क्यों नहीं ? बराबर निभ सकती हैं। समाजच्युत होने का भय, सदाचार की शिक्षा और वेश्यागमन की ओर, एरीगमन की ओर प्रवृत्ति न होने पावे, ऐसे बंधन बस तीनों का निर्वाह होना चाहिए। यदि इन बातों पर ध्यान रहे तो कभी कोई नर नारी चुराई की ओर नहीं झुक सकते ।"

“बेशक ब्रह्मचर्य बहुत ही बढ़कर है ।"