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"नहीं! आप मेरा मतलब समझे नहीं । वेशक रंडियां समाज में एक बला हैं। तब ही शिष्ट पुरुषों ने इनकी निंदा की है । वेश्यागमन करनेवाले के राजदंड मिलता है, वह समाजच्युत किया जाता है और सबसे बढ़कर यह कि वह लोगों की आँखों से गिर जाता है। परंतु इससे आप यह न समझ लीजिए कि ये समाज से निकाल देने के लायक हैं, फिजूल हैं और इन्हें बंद कर देना चाहिए। नहीं ! इनकी भी समाज के लिये दो कारणों से आवश्यकता है। एक यह कि जब गाने बजाने और नाचने का पेशा करनेवाली हमारी सोसाइटी में न रहेंगी तब कुल-वधुएँ इस काम के ग्रहण करेगी । मैसूर और मदरास प्रांत में जहाँ रंडी का नाच बंड कर दिया गया है वहाँ भले घर की बहू बेटियां को नाचना गाना सिखाने के लिये स्कूल खोलने का अवसर आया है । नृत्य और गायन पर मनुष्य की स्वभाव से प्रवृत्ति है । उसको पूरा करने के लिये दोनों मार्ग खुले हुए हैं । आप यदि रंडी का नाम बंद करेंगे तो एक दिन आपकी बहू बेटियाँ अवश्य नचानी पड़ेगी !"

“परंतु महाराज ! रडियां तो देश में व्यभिचार फैला रहीं हैं, लड़कों को बिगाड़ रही हैं।"

“बेशक बिगाड़ रही हैं और जहाँ तक बन सके समाज से भय दिलाकर ऐसा कुकर्म बंद करना चाहिए परंतु समष्टि रूप से समाज पर दृष्टि डालिए तो इस काम के लिये भी