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“हाँ वीर ! मेरी धरोहर बस मुझे भी यही चाहिए । दिए जा ऐसी ऐसी धरोहरें और में भरोसे सुख से सो । जितने होगे सबको मैं अबेर लूंगी ।"

"बस बस ! ( मुस्कुराकर ) दिल्लगी न करो ! भगवान् ने जो दिए हैं वे ही सुख से रहें ।" कहती हुई बालक को जेठानी की गोदी में देकर सुखदा अपने कमरे में जा सोई और इधर छोटा नन्हा बड़े भाई के पास जाकर सो गया। दोनों को सुलाकर' बस वे दोनों भी सो गए ।