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"तब ?"

"वास्तव में तुम्हारे" "तब " का जवाब बड़ा मुशकिल है। भारतवर्ष भर में प्रसिद्ध है कि " साँझे की तो होला अच्छी जिसे जला दिया जाये ।" हम लोगों की आदत ही नहीं है कि साँझे में काम करके उसे पार उतार ले जायं । भारतवर्ष उधोगशील अँगरेजों की छत्रछाया में आकर जिन कारणों से अब तक दरिद्री बना हुआ है उनमें एक यह भी है कि हम लेग मिलकर काम करना नहीं जानते । परमेश्वर के अनुग्रह से अब सीखने लगे हैं और सफलता भी प्राप्त करते जाते हैं परंतु यहाँ जो कार्य एक व्यक्ति की बुद्धि से, वल से, विद्या और पुरुषार्थ से हो सकता है वह अनेक से नहीं । यदि एक अगुवा बनकर समुदाय को अपनी ओर झुकाना चाहे तो सहज में झुका सकता है। "दुनिया झुकती हैं झुकानेवाला चाहिए।" किंतु जहाँ दस आदमी मिलकर काम करते हैं वहाँ आपस में खेंचातानी होती है, झुक्का फजीहत होती है।"

"हाँ ! आपका कथन यथार्थ हैं परंतु तब ?"

"घबड़ाओं मत ! मैंने पहले ही से सोच लिया है ! यदि पहले से इसका निश्चय न कर लेता तो अभी इस काम में हाथ न डालता । इतना परिश्रम और इतना खर्च ही क्यों करवाता ?"

"हाँ सो तो मुझे भी निश्चय है। परंतु ?"