पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१९२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१८३)

आए, उन्हें बहुत ही उत्तम तो नहीं परंतु जैसी तैसी डाइरेकृरी तैयार मिल गई । पंडित जी इसके साथ नमूने का संग्रह देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कांतानाथ को शाबाशी देकर यहां तक कह दिया कि----

"करनेवाला तो परमात्मा हैं परंतु आशा है कि सफलता होगी। इसके लिये सबसे बड़ा काम यही था जो तुमने कर लिया ।"

"सब आपके अनुग्रह से, आपके प्रताप से और आपके उपदेश से । काम क्योकर करना, सो पहले ही मैं आपके लिख चुका और अब भी संक्षेप से सुना देंगा। अभी तक इस काम के लिये तीन सौ तेंतीस तेरह ने तीन पाई खर्च हुआ है। और काम छेड़ते ही रुपए की आवश्यकता पड़ेगी । इसके लिये अभी दस हजार रुपया चाहिए। यह रकम कम से कम है । ज्यो ज्यों काम बढ़ेगा त्यों त्यों रूपए की आवश्यकता बढ़ेगी किंतु मैं घर में से एक पाई भी नहीं दे सकता । जितना रुपया था वह अभी इधर उधर व्यापार धंधे में, जमीदारी में लगा हुआ है। उधर ने रूपया खैंचना अध्रुब के भरोसे ध्रुव आय को, निश्चित आमदनी को बिगाड़ देना हैं । परमेश्वर करे इस उद्योग में सफलता हो और आपके प्रताप से लाभ ही होगा परंतु......... "हां ! परंतु कहकर कुक क्या नए ? यही कहेगे ना कि रुपया चाहिए। बेशक ! सबसे पहले आवश्यकता रुपए