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प्रकरण--६३
नौकरी का इस्तीफा

जिस ख्याल से पंडित जी ने भाई की नौकरी छुड़वाई वही उनके लिये था । कदाचित् उससे भी बढ़ कर । उनके संध्यावंदन अग्निहोत्र बलिवैश्वदेवादि नित्य कर्मों में जब जब विन्न पड़ता तब ही तब वह इस्तीफा देने को तैयार होते । उन्होंने दों तीन बार दिया भी परंतु उनकी कार्यकुशनुता, उनकी भलमनसाहत, उनकी सत्यनिष्ठा और उनकी ईमानदारी देखकर ऊपर के अफसरों ने मंजूर नहीं किया । वह पहले ही धर्मनिष्ठ थे और यात्रा ने और भी उनको दृढ़ कर दिया इसलिये उनकी इच्छा नहीं थी कि फिर जाकर नौकरी की चक्की में पिसें । परंतु छुट्टी से वापिस जाकर एक बार अपने पद का चार्ज लेना अनिवार्य था इसलिये उन्हें जाना पड़ा और यह गए भी परंतु इस बार इस्तीफा देकर अपना पिंड छुड़ाने के लिये ।

वह किसी जमीदारी में कोर्ट आफ वार्ड स के मैनेजर थे । वहाँ का राजा अभी निर बालक था। इधर उनमें ऊपर लिखे हुए गुण लबालब भरे हुए थे इसलिये अफसर उनसे प्रसन्न रहते थे और उनके आगे जब किसी की दाल नहीं गलने पाती थी तब अमला उनसे नाराज ! इस कारण लोगों ने उन पर