पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१६२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
प्रकरण--६१
मठाघीश साधु

पाठक यह न समझ लें कि पंडित प्रियानाथजी घर आकर उन साधु बालकों को भूल गए। वह भूलनेवाले मनुष्य नहीं वरन् यों कहना चाहिए कि वे जान की जोखों उठाकर अपनी प्रतिज्ञा पालन करनेवाले थे। जिस काम में उन्होंने हाथ डाला उसे पार तक पहुँचा दिया है । ऐसी प्रतिज्ञा ही क्यों करनी जिसका निर्वाह न हो सके ? और जब करनी तब पार उतारनी, यह उनका अटल सिद्धांत था । अस्तु ! जिस समय वे गांव में पहुँचे उसी घड़ी उन बालक बालिका के लिये पहाड़ी टीलेवाली गुफा उन्होंने साफ करवाई, धूनी का, सीतलपट्टी ,कंबलों का और जल का प्रबंध किया और जब उन देने की भिक्षा हो गई तब आप अन्न जल न्तिया । अब जो कुछ इनके घर में बनता है उसमें इन दोनों के योग्य सिद्धान्न इनकी कुटी पर पहुँचा दिया जाता है । पंडित जी और गौड़बोले पारी पारी से उनको जाकर नित्य सँभाल आते हैं। यों ये कभी कभी गाँव में भी आते जाते हैं परंतु नित्य नहीं, महीना बीस दिन में । पहले पहले लोग उनकी कुटी पर जा जाकर अपना अपना मनेारथ सिद्ध करने के लिये प्रार्थना भी करते थे। कुसंग के लिये ललचाकर फंसानेवाले भी गए