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के मित्र को पहले से भय था। अब वे पैरों के यहाँ मजदूरी कर अपने पेट भरते हैं, अपने किए पर पछताते हैं, माँ बाप को याद करते रोते हैं। इस विपत्ति के समय यदि सहारा है तो यही कि पंडितजी ने उन्हें बुला बुलाकर किसी न किसी काम में लगा दिया हैं। यों अंत में वे लोग अपने दुःख के दिन सुख से बिताने लगे हैं।