यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(७)
उनके चरणों में अपने चर्मचक्षुओं के साथ साथ हृदय के नेत्रों के गड़ाते हुए पंडित प्रियानाथ जी आदि गाने लगा ---
‘देश सोरठ----हरि है बड़ी बेर के ठाढ़ो ।। टेक ।।
जैसे और पतित तुम तारे तिन ही में लिन काढ़ो ।।
जुग जुग बिरद यही चल आयो टेर करते हो ताते ।।
मरियत लाज पंच पतितन में हैं। धट कहे। कहाँ से? ।।
कै अब हार मान कर बैठो कै कर शिरद सही ।
सृर पतित जो झूठ कहत है देखो खोल बही ।। १ ।।
धनाश्री-... नाक मोहि अब की बेर उबारो ।। टेक ।।
तुम नाथन के नाथ स्वामी दात नाम तिहारो ।
कर्महीन जन्म को अंधो सोतें कौन नकारो।।
तीन लोक के तुम प्रतिपालक मैं ता दास तिहारो ।
तारी जात कुजात प्रभुजी मोपर किरपा धारो ।।
पतितन में एक नायक कहिए नीचन में सरदारो ।
कोटि पापो इक पासँग मेरे अजामील के। न विचारो ।।
नाट्यो धर्म नाम सुन मेरो नरक दिया हठ तारो ।
मोकों ठौर नहीं अब कोऊ अपनो विरद संभारो॥
क्षुद्र पतित तुम तारे रमापति अब न करो जिय गारो।
सूरदास साँचो तब मानै जो होय मम निस्तारे ।। २ ।।
शरण अआए की लाज उर धरिए ।। टेक ।।।
सध्यो नहीं धर्म शील शुचि तप व्रत कछू कहा मुख ले बिनै
तुम्हें करिए !!