"नहीं! शास्त्र के संस्कार भी दूषित हो गए हैं। अहा ! अपने पूर्वजों की प्रंशस किए बिना मैं आगे नहीं बढ़ सकता । जो काम लाख रुपया खर्च करके, हजारों की दूरबीनों द्वारा आज़ दिन विदाई युरोपियन करते हैं वह उन्होंने आज से हजार बर्ष पहले नरसल और मिट्टी से सिद्ध कर लिया था। आज भी कि एक अच्छा ज्योतिषी केवल नरसल की नलिका को मिट्टी में गाड़कर ग्रहों का वेथ कर सकता है। यदि उनके पोथी पत्रे छीन लिए जायँ तो जनशून्य जंगल में बैठे बैठे वह केबल इन्हीं की मदद से आज बतला सकता है कि तिथि, वार, नक्षत्र, योग और कर्ण क्या हैं ? तारीख क्या है ?"
“अच्छा ! यह तो अपने गणित के गुण गाए। परंतु फलित में दोष आने के कारण ?"
“गणित के क्षेत्र से ही फलित दूषित हैं गया हैं। बात यह है कि भास्कराचार्य को ग्रहों को वेथ कर सूर्यसिद्धांत बनाए लगभग छः हजार वर्ष हो गए । नक्षत्र स्थिर होने पर भी थोड़े थोड़े अपने अपने स्थानों से हटते हैं। उन्होंने इस हटाहटी का निश्चय करके लिख दिया है कि इतने वर्षों में इतना अंतर निकाल देना चाहिए । ग्रहलाघचकार ने जब ग्रहों के उड्यास्त में उनकी गति में अंतर देखा तब उसने उसी आधार पर गणित करके, वेध कर नहीं, वह अंतर निकाल दिया । इस बात को भी तीन हजार वर्ष हो गए । बस’ पंचांग में ग्रहों का उदयास्त न मिलने का यही कारण है । इसी