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तो कोई खबर पूछनेवाला नहीं ! परंतु यहा बिना काम काजा के, खाली बैठे रोटियाँ तोड़ना मुझसे नहीं बन सकेगा "

“नही ! नहीं !आप कभी रोटियाँ तोड़ना समझिए । भगवान् के घर में आप अधिक और मैं कम । फिर आपके लिये काम भी मैंने सोच लिया है। वास्तव में काम बिना आदमी निकम्मा हो जाता है, किसी काम का नहीं रहता, बिलकुल लदी। जो कुछ काम नहीं करता वह पाप करता है । और हम पैदा भी तो काम करने के लियं, कर्तव्यपालन के लिये हुए हैं,भोग विलास के लिये नहीं । सय पूछो तो अपने कर्तव्यपालन में जैसा सुख है वैसा और किसी में नहीं। इसके सामने त्रिलोकी का राज्य मिट्टी है, लाख रूपए के नोट रही हैं, पोड़शी रमणी धूल है । जो आनंद अपने कर्तव्य पालन में सफलता हो जाने पर होता हैं वद्द सचमुच अलौकिक हैं। यदि हम लोग इस बात में दृढ़ हो जायं तो बस हमने विश्व को जीत लिया । सफलता और निष्फलता, परिणाम परमेश्वर के हाथ सही किंतु हमें फल की अकांक्षा पर राग द्वेष छोड़कर काम करते रहना चाहिए ।"

"हां ! आपका कथन सही है । मैं भी ऐसा ही मानता हूँ। परंतु काम क्या सोचा है ? देखूं तो मैं उसे कर सकता हूं या नहीं ? क्योंकि जब मैं जानता कुछ नहीं तब ऐसा काम ही क्या होगा जिसे मैं कर सकें ? हाँ थेाड़ा बहुत कर्मकांड अवश्य जानता हूँ परंतु अब इससे गुजर होना कठिन है।