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कई बार मुझे संतुष्ट भी कर दिया था और आपने स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि आप मुझे निर्दोष समझते हैं परंतु जब तक छोटे भैया का संदेह न निकले, मेरा दुख दूर नहीं होता था, मुझे दिन रात कल नहीं पड़ती थी।"

"हाँ बेशक ! ऐसा ही है । चलो अच्छा हुआ । उसका भी संदेह निकल गया ।"

"जी हां । उनका संदेह तो निकल गया परंतु आपने बनारस में ही सब के सामने इस बात का प्रकाशित क्यो न कर दिया? यहां तक कि आपने प्रकाशित ना करने का कारण भी ना कहा। क्या मुझे चिढ़ाने के लिए ?

  • नहीं ! तुझे चिढ़ाने के लिये नहीं ! केवल इसलिए कि यदि बात अपराधी के मुँह से प्रकाशित हो तो अधिक अच्छा !"

"अच्छा ! अब मैं समझी ! परंतु अच्छा हुआ उस दुष्ट को भी सजा मिल गई । ऐसे पामर को फाँसी पर लटकाना चाहिए था।"

"हाँ जैसा करता है वैसा पा लेता है। अब हमें क्या मतलब ! और मेरी समझ में जन्म भर दुःख पाना फाँसी से भी बढ़कर सजा है । वकीलों की दलील ने कानूनी बारीकी से उसे बचा लिया !"

"कानूनी बारीकी क्या ?"