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समय दुः:खदा कही गई थी वह आज सच्ची सुखदा बनकर अपनी जेठानी के चरणों में लटकी हुई उससे क्षमा पर क्षमा माँगने और करने लगी कि "जब तक तुम" माफ कर दिया' न कहोगी तब तक इन चरणों को न छोडूगी ।” प्रियंवदा के उसे उठाकर अपनी छाती से लगा लिया और तबसे दोनों से सगी बहनों का स्वा प्रेम हो गया ।

पंडित जी ने, उनके साथियों ने धरणीधर महाराज को, वहाँ के अन्यान्य सुपात्र ब्राह्मणों को और दीन भिखारियों को यथाशक्ति दान देकर क्योंकर उन्हें अपने मधुर भाषण से संतुष्ट कर दिया और क्योंकर उनके आशीर्वाद से वे गदगद हो गए सो कहनेवाले सज्जनों को इसका थोड़ा बहुत अनुभव होता ही है । हाँ ! एक घटना से उनका हृदय एकदम दइल उठा । पंडित जी जैसे दयालु ब्राहाण' के आंखों देखने, उनके निकट से जगज्जननी, परम वंदनीया गैौ माता के पामर मगर किनारे से खैंचकर और सो भी जल-पान करते समय ले जावे, इनके नेत्रों के समक्ष, हजारों आदमियों के देखते देखते हिंदुओ की प्यारी गौ डुबक डुबक करती करती जल में डूब जावे, उसकी नन्हीं सी बछिया किनारे पर विलविलाती खड़ी रहे और किसी से कुछ करते धरते न बन्न पड़े, बस इससे बढ़कर संताप क्या हो सकता है ? वह अवश्य उसे छुड़ाने के लिये लॅगोट बाँधकर कूद पड़ते, वह तैराक भी