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"यथार्थ है! बेशक सही है!" कहकर गौड़बोले ने अनुमोदन किया और तब फिर पंडितजी बोले --

"आज मुझसे एक भूल हो गई। भूल का प्रयोजन तो आपने समझ ही लिया। इसी लिये समय को देखते हुए, लोगों के कलुषित मनों की थाह पाकर कहना पड़ता है कि देवस्थानों में, तीर्थों पर स्त्री पुरुषों का साथ होना बुरा है। इसी लिये युवतियों का पिता भाई के साथ एकांत में रहना वर्जित है। मुझसे भूल हुई, पाप नहीं हुआ और जो भूल हुई उसके लिये क्षमा करनेवाला भी भोला भंडारी है, किंतु देवदर्शनों में, यात्राओं में, भीड़ में, अनेक दुष्ट लोग स्त्रियों को सताकर कुकर्म करते हैं। पुण्य करने के बदले लोग पाप- बटोरते हैं। अनेक कुलटाओं को ऐसे पुण्यस्थलों पर अपने जारों से मिलने का अवसर मिलता है। अनेक नर राक्षस ऐसी जगहों में परमारियों की लाज लुटते हैं और उस समय कामांध होकर नहीं जानते कि नरक में हमें कैसी यातनाएँ भोगनी पड़ेगी। कामदेव के विनाश करनेवाले के समक्ष यदि ऐसा अनर्थ हो तो बहुत खेद की बात है। इसका कुछ प्रतीकार होना चाहिए।"

इस तरह कहते हुए ये लोग घर पहुँचे और बूढ़ा बुढ़िया भक्तिरमामृत का पान करके कृतकृत्य हुए।

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